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________________ * षष्ठ सगं * ४०१ भी इच्छा न की। जिस प्रकार अगन्धक कुलोत्पन्न नाग वमन किये हुए पदार्थोको पुनः ग्रहण करनेकी इच्छा नहीं करता, उसी तरह सनत्कुमारने सवका परित्याग कर दिया। अनन्तर सनत्कुमार मुनिने निश्चय किया कि छ?के पारणमें मामूली चावल और बकरीका मट्ठा सेवन कर तपश्चर्या करूंगा। अतः उन्होंने छडका व्रत करना आरम्भ किया। पारणके दिन चावल और बकरीका मट्ठा, जो उन्हें अनायास मिल जाता था, उसीसे पारण कर पुनः वही व्रत कर रहे। इससे उन्हें अनेक दुष्ट व्याधियां हो गयीं। सूखी खाज, ज्वर, खांसी, श्वास, अन्नकी अरुचि, नेत्र-पीड़ा और उदर पीड़ा-यह सात व्याधियां अत्यन्त दारुण गिनी जाती हैं। इनके अतिरिक्त सनत्कुमारको और भी अनेक रोग हो गये। इस तरह सात सौ वर्ष पर्यन्त वे इन व्याधिओंको सम्यक् भावसे सहन करते रहे और उग्र तपसे किसी प्रकार भी विचलित न हुए। इस उग्र तपके प्रभावसे उन्हें कफौषधि, श्लेष्मौषधि, विपृडौषधि, मलौषधि, आमषौ षधि, सवौं पधि और संभिन्न श्रोत–इन सात लब्धियोंको प्राप्ति हुई, तथापि उन्होंने रोगोंका किञ्चित् भी प्रतिकार न किया। एक बार सौधर्मेन्द्रने सुधर्मा सभामें साधुका वर्णन करते हुए सनत्कुमार चक्रीके धैर्यकी बड़ो प्रशंसा की। इसके बाद वह स्वयं वैद्यका रूप धारण कर सनत्कुमारके पास गये और उनसे कहा कि-“हे भगवन् ! यदि आप आज्ञा दे तो मैं आपकी न्याधियोंका प्रतिकार करूं । यद्यपि आप निरपेक्ष हैं, तथापि मैं
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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