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________________ * षष्ठ सर्ग ३०९ बवनेके लिये मैं इतनी दूर आयी, वह अब भी मेरे पीछे पड़ी हुई है। खैर, चाहे जो हो, जिस शीलकी मैंने अबतक रक्षा की है, उसे भविष्यमें भी प्राणपणसे बचानेकी चेष्टा करूंगी।' यह सोचकर उसने विद्याधरसे कहा,-"महानुभाव ! पहले आप मुझे नन्दीश्वरद्वीप ले चलिये और जिन-वन्दन तथा मुनिवन्दन कराइये। इसके बाद आप जो कहेंगे वही करूंगी।" मदनरेखाके इन वचनोंसे सन्तुष्ट होकर विद्याधरने उसी क्षण उसे विमानमें बैठाकर नन्दीश्वरद्वीपके लिये प्रस्थान किया। ___ नन्दीश्वर द्वीपकी शोभा अवर्णनीय थी। चार चैत्य चार अंजन गिरिपर, सोलह चैत्य सोलह दधिमुखपर और बत्तीस चैत्य बत्तीस रतिकरपर सुशोभित हो रहे थे। सब मिलाकर बावन जिनालय थे। वे सौ योजन लम्बे, पवास योजन चौड़े और बहत्तर योजन ऊंचे थे। विमानसे उतर कर दोनोंने ऋषभ, चन्द्रानन, वारिषेण और वर्धमान नामक शाश्वत जिनेश्वरोंकी प्रतिमाभोंका भक्तिपूर्वक पूजन वन्दन किया। इसके बाद मणिनड़ मुनीश्वरको नमस्कार कर वे दोनों उनके पास बैठे गये। मुनीश्वर परम ज्ञानी थे। वे अपने ज्ञानसे मदनरेखाके मनोभाव तुरत ही ताड़ गये। उन्होंने मणिप्रभको धर्मोपदेश देते हुए शीलके सम्बन्धमें बहुत कुछ शिक्षा दी। इससे मणिप्रभको अपने पापके लिये पश्चाताप हुआ और उसने मदनरेखासे क्षमा प्रार्थना कर अपना अपराध क्षमा कराया। मणिप्रभने कहा,आजसे मैं तुझे अपनी बहिन मानगा। मेरे योग्य जो कार्यसेवा
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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