SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८० * पार्श्वनाथ चरित्र * प्राप्त होता है और स्त्रीत्व प्राप्त होनेपर यदि उसमें शील न हुआ तो उसका जीवन बेकार ही समझना चाहिये । अतएव स्त्रियोंका मुख्य गुण शील ही है। इसके अतिरिक्त जो पुरुष सज्जन होते हैं, वे मृत्युको भेंटना पसन्द करते हैं, किन्तु किसीके शीलको खण्डित नहीं करते। इससे दोनों लोक बिगड़ते हैं। और भी कहा है कि जीवहिंसा, असत्य और परद्रव्यके अपहरण एवम् परस्त्रीकी कामना करनेसे प्राणियोंको नरककी प्राप्ति होती है । इसलिये तू राजासे जाकर कह दे कि हे राजन् ! सन्तोष कीजिये और इस दुराग्रहको छोड़ दीजिये। ऐसी तृष्णा को कभी भूलकर भी हृदय में स्थान न देना चाहिये ।" मदनरेखाकी यह बातें सुन दूतीने ज्यों-की-त्यों राजाको कह सुनायी; किन्तु इससे उसकी कामतृष्णा शान्त होनेके बदले और भी प्रबल हो उठो । एक दिन राजा के मनमें विचार आया कि जबतक युगबाहु जीता रहेगा तबतक मदनरेखाको वश करना कठिन है । अतएव किसी तरह पहले इस कण्टकको दूर करना चाहिये । इसके बाद मदनरेखा बातसे न मानेगी तो उसे बलसे भी वश कर लूंगा । यह सोचकर वह किसी उपयुक्त अवसरकी प्रतीक्षा करने लगा । वास्तव में काम और मोहकी विडम्बना ऐसी ही होती है । जात्यन्ध, मदोन्मत्त और अर्थी कभी भी अपने दोषको नहीं देख सकते । किसीने ठोक ही कहा है कि नीमके पेड़को दूधसे सींचा जाय और उसके चारों ओर गुड़का थाला बनाया जाय, तब भी वह अपनी कटुताको नहीं छोड़ सकता। कहने का तात्पर्य यह
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy