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________________ • पार्श्वनाथ-चरित्र * सुखोपभोग करने लगा। कुछ दिनोंके बाद राजाने उसे राज्य देकर दीक्षा ग्रहण कर ली। इस प्रकार भानु मन्त्री काशीराजका उत्तराधिकारी हुआ और न्याय एवम् नीति पूर्वक प्रजाका पालन करने लगा। किसीने ठीक ही कहा है कि सभी दिन समान नहीं होते। दुःखके बाद सुख और सुखके बाद दुःख यही संसारका नियम है। तदनुसार कुछ दिनोंके बाद सरस्वतीको एक दिन बड़े जोरका बुखार आया और उसीके कारण उसका प्राणान्त हो गया। यह देख भानुराजाको न केवल दुःख ही हुआ बल्कि इस घटनाके कारण उसे वैराग्य आ गया और उसी समय उसने दीक्षा भी ग्रहण कर ली। अनन्तर वह चारित्रका पालन करने लगा। हे मद्र! वह भानुराजा मैं ही हूं और अपने अनुभवसे ही कहता हूँ कि जीते रहनेसे अवश्य हो कल्याण होता है। अब तुझे धर्म करना चाहिये। इसीसे तेरा कल्याण होगा। यह सुन चन्द्रने कहा-"गुरुदेव ! आपकी आज्ञा माननेको तैयार हूं, किन्तु मुझे ऐसी कोई युक्ति बतलानेकी कृपा करें, जिससे परिश्रम तो थोड़ा ही करना पड़े और फल अधिक मिले ।” चन्द्रकी यह बात सुन मुनिराजने उसे पंचपरमेष्ठी नमस्कार कह सुनाया। इससे चन्द्रको ज्ञान प्राप्त हुआ और उसने वह मन्त्र .उसी समय कण्ठस्थ कर लिया। अनन्तर मुनिने उसे उपदेश देते हुए कहा-“हे भद्र ! इसी मन्गका निरन्तर स्मरण कर सम्यक्त्वका भली भांति पालन करना।” मुनिका यह उपदेश ग्रहणकर, चन्द्र विचरण करता
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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