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* पार्श्वनाथ चरित्र #
स्वती पलंग पर बैठी हुई रो रही है । यह देख वह तुरत उसके पास पहुँचा और उससे पूछने लगा कि - "प्रिये ! क्यों रो रही हो ?” यह सुन सरस्वतीने कहा- “ योंही ।” किन्तु इस उत्तरसे भानुको सन्तोष न हुआ। वह फिरसे उसके रोनेका कारण पूछने लगा। उसे इस तरह आग्रह करते देख सरस्वतीने कहा“स्वामिन्! मैंने आज स्वप्नमें देखा कि आप किसी अन्य स्त्रीसे विलास कर रहे हैं । इसीलिये मुझे दुःख हो आया और रो रहा हूँ।” यह सुनकर भानु अपने मनमें कहने लगा"अहो ! जब यह स्वप्न में भी सौतको देखकर दुःखो हो रही है, सौत आ जाय तो इसकी क्या अवस्था हो ?” यह सोचते हुए उसने कहा - "हे प्रिये ! मेरे हृदयपर तेरा ही एक मात्र अधिकार है और भविष्य में भी यही रहेगा । यह शायद तुझे बतलाना न होगा कि मैं तुझे ही देखकर जीता हूं । ईश्वर न करे, यदि तेरे जीवनको कुछ हुआ, तो मेरे लिये प्राण धारण करना भी कठिन हो जायगा ।" भानुकी यह बात सुन सरस्वतीको बड़ा ही आनन्द हुआ और वे दोनों फिर उसी तरह दिन बिताने लगे ।
तब यदि साक्षात्
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कुछ दिनोंके बाद राजाको मन्त्री और सेनाके साथ कहीं दूर विदेश जाना पड़ा। वहां एक दिन स्त्री-पुरुष के प्रेमके सम्बन्धमें बातचीत होनेपर मन्त्रीने राजाको अपने दाम्पत्य प्रेमको बात कह सुनायी । मन्त्रीकी बातपर राजाको विश्वास न हुआ । उसने सोचा कि मन्त्री और सरस्वतीके इस प्रेमकी परीक्षा लेनी चाहिये। यह सोचकर उसने एक मनुष्यको जयपुर भेजा और