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________________ ३५४ * पार्श्वनाथ-चरित्र * उसे अपनी समस्त सम्पत्ति और स्वर्ण रत्नादिक सम्हालनेका काम सौंपा। इससे वह सुखी हुई और लोगोंने भी उसकी खूब प्रशंसा को। ___ इसके बाद दत्तने रोहिणीको बुलाकर उससे भी वही पांच दाने मांगे। रोहिणीने कहा,-"अच्छा, पिताजी, मैं उन्हें अभी मंगाये देती हूं। किन्तु इसके लिये कुछ गाड़ियोंकी आवश्यकता होगी। यह सुन दत्तने कहा,-"गाड़ियोंका क्या होगा ?" रोहिणीने कहा, “पिताजी ! जिस समय आपने सबके सामने मुझे वे दाने दिये, उस समय मैंने सोचा कि अवश्य इसमें कोई रहस्य होना चाहिये । इसलिये मैंने अपने भाईको वे दाने देकर कहा कि इन्हें खेतमें बुवा दो। अतएव भाईने वे दाने एक किसानको दे दिये। किसानने उन्हें पहले वर्ष बोये। पहले वर्षमें वोनेसे जितने दाने उत्पन्न हुए, उतने सब दूसरे वर्ष बो दिये गये। इसी तरह बोते-बोते वे अब इतने अधिक हो गये हैं, कि उन्हें लानेके लिये वास्तवमें कई गाड़ियोंकी आवश्यकता पड़ेगी।” रोहिणीकी यह बात सुनकर दत्तने तुरत गाड़ियां मंगवा दीं। इसके बाद रोहिणीने वह सब चावल भरवा मंगाये। यह देख कर सब लोग उसकी बार बार प्रशंसा करने लगे। दत्तको भी इससे परम सन्तोष हुआ और उसने रोहिणोको गृहस्वामिनो बनाकर सबको आज्ञा दो, कि यहो बहू मेरे गृहको स्वामिनी है अतएव कोई इसकी आज्ञा उल्लंघन करनेका साहस न करें।
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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