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________________ * प्रथम सर्ग * अपने प्राणोंसे भी बढ़कर प्यारी, सुन्दरी और चौंसठ कलाओं में प्रवीण पुष्पावती नामकी एक पुत्री है । परन्तु नेत्र नहीं होनेके कारण उसके ये सारे गुण मिट्टीके मोल हो गये हैं । एक दिन राजा उसकी हालत पर विचार कर रहे थे कि देव भी क्याक्या करामात किया करता है ? पर दैवको दोष देकर ही चुप बैठनातो ठोक नहीं, कुछ इलाज भी करना चाहिये । यही सोच कर राजाने नगरमें ढिंढोरा पिटवाया कि जो कोई राजकुमारीकी आँखें ठीक कर देगा, उसे वे अपनी पुत्री और आधा राज्य दे देंगे। यह सुन देश-देशके नेत्र वैद्य आये और तरह- तरहके उपाये किये; पर उसकी आँखें आराम नहीं हुई। यह देख, राजा बड़ी चिन्तामें पड़ गये । उन्हें बड़ा कष्ट होने लगा क्योंकि चितासे भी चिन्ता बढ़कर है । चिता मरेको जलाती है, पर चिन्ता तो जीते-जी जला डालती है। राजा हर रोज ढिंढोरा पिटवाते-पिटवाते हैरान हो गये; पर कोई आराम करनेवाला नहीं मिला। इसीलिये दुःखित राजा और रानी दोनों कल सवेरे चितामें प्रवेश करने वाले हैं । अब देखा चाहिये, क्या होता है ? यहाँसे कल चलकर जरूर देखना चहिये ।” ; इसी समय एक छोटेसे बच्चेने बड़े आश्चर्यके साथ पूछा,“क्यों चाचाजी ! क्या राजकुमारीकी आँखें अच्छी होनेका कोई उपाय है ? वृद्धने कहा, – “भला जो जन्मसे अन्धी हो, उसकी आँखें किस तरह अच्छी हो सकेंगी ? तोभी मणि, और औषधियोंका अचिन्त्य प्रभाव होता है ।" उस बच्चेंने मन्त्र
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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