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________________ * पार्श्वनाथ-चरित्र - निवेदन किया कि-“हे राजेन्द्र ! बाहर दो पुरुष आये हुए हैं और वे आपके दर्शन करना चाहते हैं।" राजाने कहा-“उन्हें अन्दर ले आओ।" राजाकी आज्ञा मिलते ही द्वारपाल उन दोनों को राजसभामें ले आया। दोनों ने राजाको नमस्कार कर उसके सामने एक पत्र रख दिया। राजा उस पत्रको खोल कर पढ़ने लगा। उसमें यह बातें लिखी हुई थीं : “स्वस्ति श्री मगधेश्वर, विजयवन्त, समस्त राजाओंके मुकुट समान, गंगापर्यन्त वसुधाके स्वामी जयन्त महाराजाको पञ्चाङ्ग नमस्कार कर कुरुदेव निवेदन करता है कि हमलोग आपके चरण कमलोंको स्मरण करते हुए आनन्दपूर्वक रहते हैं, पर सीमा प्रदेशका सेवाल राजा हमारे देशमें बहुतही उपद्रव करता है, इसलिये हमलोग आपकी शरणमें आये हैं। अब आप ही हमारो रक्षा कीजिये।” यह पत्र पढ़कर क्रोधके कारण राजाके नेत्र लाल हो गये। वह अपने सुमटोंसे कहने लगा-“यह कितने आश्चर्यको बात है कि एक शशक सोते हुए सिंहको जगा रहा है। मूढ़ सेवाल इस प्रकार उपद्रव क्योंकर रहा है ? तुम सब लोग शीघ्रही शस्त्र बांध कर तैयार हो जाओ। इसी समय हमलोग रणयात्राके लिये प्रस्थान करेंगे। ___ राजाको इस प्रकार रणयात्राकी तैयारी करते देख, दोनों कुमारोंने पूछा,-"पिताजी ! यह सब तैयारी किस लिये हो रही है ?” राजाने कहा-“सेवाल राजा कुरुदेवको कष्ट दोरहा है। उसीको दण्ड देनेके लिये मैंने योद्धाओंको सजित होनेकी आज्ञा
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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