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________________ * पार्श्वनाथ-चरित्र समान बिजली चमकने लगी। गगनभेदी गर्जनाओंसे दसो दिशायें पूरित हो गयीं। सारा संसार व्याकुल हो उठा और थोड़ीही देरमें मूशलाधार वृष्टि होने लगी। इससे कुछही समयमें सारी पृथ्वी जलमय हो गयी और जल-प्रलयका भयंकर द्श्य उपस्थित हो गया। पशु, पक्षी, मनुष्य और वृक्ष-सभी पानोमें बहने लगे। जानु, कटि और छातीसे बढ़ते बढ़ते अन्तमें प्रभुके कंठ पर्यन्त जल आ गया और क्षण भरके बाद ही नासिकाके अग्रभाग तक पहुँच गया, किन्तु इतने पर भी भगवान अपने ध्यानसे चलायमान न हुए। भवसागरमें डूबते हुए संसारके लिये आधारभूत स्तम्भको भांति वे अब भी स्थिर थे। किन्तु अब हद हो चुकी थी। इस घटना को देख कर धरणेन्द्रका आसन हिल उठा। भगवानको उपसर्ग होते देख वह तत्काल अपनी देवियोंके साथ वहां दौड़ आया। उसने प्रभुको नमस्कार कर तुरत उनके चरणोंके नीचे कमलकी स्थापना की और मस्तकपर सात फनका छत्र धारण किया। उस समय भगवान ध्यान-समाधि सुखके लीला रूप कमलपर राज हंसकी भांति शोभने लगे। भक्ति भावसे भरी हुई धरणेन्द्रकी देवियां (इन्द्राणियां प्रभुके निकट वेणु, वीणा और मृदंगादि बाजोंके साथ संगीत और नाटकका समारोह करने लगीं। उस समय भक्तिमान धरणेन्द्र और उपसर्ग करनेवाले कमठदोनोंपर प्रभुको समान मनोवृत्ति थी। अन्तमें धरणेन्द्रसेन रहा गया तब उसने कमठसे क्रोध और अक्षेप पूर्वक कहा"हे दुर्मते! अपने अनर्थके लिये तू यह क्या कर रहा है ? मैं
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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