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________________ ३३० पाश्वनाथ-चरित्र* प्रति भक्ति होनेके कारण उस हाथोकी मृत्यु होनेपर, वह महर्द्धिक व्यन्तर हुआ और इसी तीर्थका उपासक हुआ।" पार्श्वप्रभु विहार करते हुए अब शिवपुरी नामक नगरीके समीप पहुंचे। वहां वे कौशंब्य नामक वनमें कायोत्सर्ग करने लगे। उस समय धरणेन्द्रने अपने पूर्व जन्मका उपकार स्मरण कर महर्द्धिके साथ वहां आकर प्रभुको भक्ति पूर्वक नमस्कार किया और स्तवन कर प्रभुके सम्मुख अभिनय करने लगा। उस समय उसने मनमें विचार किया कि जबतक मैं प्रभुको सेवामें उपस्थित रहूं, तबतक इन्हें धूप न लगे तो अच्छा हो। यह सोच कर उसने उनके मस्तकपर सहस्र फणका छत्र धारण किया। कुछ दिनोंके बाद जब भगवानने अन्यत्र विहार किया तब धरणेन्द्र भी अपने स्थान चला गया । उस समयसे लोगोंने वहां अहिच्छत्रा नामक एक नगरी बसायी और उसी जगह 'अहिच्छत्रा' नामक तीर्थ प्रसिद्ध किआ। अब भगवान राजपुर नगरके समीप एक उपवनमें जाकर कायोत्सर्ग करने लगे। वहां ईश्वर नामक एक राजा राज करता था। वह एक दिन अपने उपवनको ओर जा रहा था, इतने में उसके सेवकोंने कहा कि- "हे स्वामिन् ! यहां पासही में अश्वसेन राजाके पुत्र पाश्व भगवान् व्रत कर रहे हैं।” यह सुनकर उसे बड़ा हो आनन्द हुआ और वह पार्श्वनाथके दर्शन करनेके लिये उनके पास गया। वहां पहुंचने पर जब उसने पार्श्वनाथको देखा, तब वह अपने मनमें सोचने लगा कि-"मैंने इन्हें अवश्य कहीं देखा है।"
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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