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* षष्ठ सग *
(२) लता दोष- वायुसे जिस तरह लता कांपती है, उस तरह शरीरको हिलाते रहना ।
(३) स्तंभादि दोष -खंभ आदिके सहारे रहना।
(४) माल दोष – मकानके खंडसे सिर लगाकर रहना
(५) उधि दोष — गाड़ेकी उधिकी तरह अंगूठा और पेंडी मिला कर दोनों पैर साथ रखना ।
(६) निगड़ दोष-पैरोंको फैला कर रखना ।
(७) शबरी दोष - भिल्लिनीकी भांति गुह्य स्थानपर हाथ रखना । (८) खलिण दोष —- घोड़ेकी लगाम की तरह हाथमें रजोहरण रखना (६) वधू दोष – नव विवाहिता वधूकी भांति सिर नीचा रखना । (१०) लंबुत्तर दोष – नाभीसे लेकरके घुटनेके नोचेतक लंबा वा
रखना ।
(११) स्तन दोष -मच्छरोंके भय किंवा अज्ञानताके कारण स्त्रियोंकी तरह शरीरको ढक रखना ।
(१२) संयती दोष - शीतादिकके भयसे साध्वीकी भांति दोनों कंधे या सारे शरीरको ढक रखना ।
(१३) भमुहंगुली दोष – आलोयना आदिका कायोत्सर्ग करनेके समय गिननेके लिये उंगली और भौंह हिलाना |
(१४) वायस दोष - कौव्वेकी तरह आंखकी पुतलियां नचाना । (१५) कपित्थ दोष --जू किंवा पसीनेके भयसे वस्त्रको कपित्थ (कथा) की तरह छिपा रखना ।