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________________ * षष्ठ सर्ग. ३२१ जलता और व्याकुल होता हुआ सर्प बाहर निकलवाया एवं उसी समय प्रभुने उस नागको नमस्कार मन्त्र सुनाया। इस प्रकार प्रभुके वचनामृतका पान कर वह सर्प समाधिपूर्वक मृत्युको प्राप्त हो नागाधिप धरणेन्द्र बनकर नागदेवोंके बीचमें विराजने लगा। इस घटनाको देखकर लोग कमठके अज्ञानकी निन्दा करते हुए पार्श्वकुमारको स्तुति करने लगे। इधर पार्श्वकुमार भी अपने निवासस्थानको लौट आये। इसके बाद कमठ भो उनसे द्वेष करता हुआ कहीं अन्यत्र चला गया। वहाँ वह हठपूर्वक बड़ा ही कष्ट कर बालतप करने लगा। इसी तरह अज्ञान तप करते हुए और प्रभुपर द्वेष रखते हुए उसको मृत्यु हो गयी। अनन्तर वह भवनवासी मेघ कुमार देवताओंमें मेघमाली नामक असुर हुआ। क्योंकि बाल तप करने में सावधान, उत्कट रोष धारण करनेवाले, तपसे गर्विष्ठ और वैरसे प्रतिबद्ध प्राणियोंको मृत्यु होनेपर असुरयोनिमें ही उनका जन्म होता है। इस प्रकार वह असुराधम मेघमाली दक्षिण श्रेणी में डेढ़ पल्योपमका आयुष्य प्राप्त कर विविध प्रकारके देवसुख उपभोग करने लगा। इधर पार्श्वकुमार भी पूर्ववत् संसार-सुख भोगते हुए आनन्दपूर्वक अपना समय व्यतीत करने लगे। ___ एक बार लोगोंके अनुरोधसे पार्श्वकुमार वसन्त ऋतुमें उद्यानकी शोभा देखने गये। वहां लता, पुष्प, वृक्ष और नाना प्रकारके कौतुकोंको देखते-देखते पाश्वप्रभुकी दृष्टि एक विशाल प्रासादपर जा पड़ी। वह प्रासाद तोरण और ध्वजा पताकाओंसे बहुत ही २१
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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