SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * पञ्चम सर्ग * ३०३ खड्डा खोदकर वहां उसकी स्थापना की। इसके बाद रत्न माणिक्य और मौक्तिकसे उस खड्डेको भरकर उसके ऊपर पीठिका बन्ध किया । इसके बाद सूतिका गृहसे पूर्व, दक्षिण और उत्तर दिशामें उन्होंने तोन कदली-गृह निर्माण किये। इनमेंसे दक्षिण दिशाके कदली गृहमें उन्होंने सर्वप्रथम भगवान् और उनकी माताको ले जाकर रत्न सिंहासनपर विराजमान करनेकेबाद तैल मदन कर उन्हें उद्वर्तन कराया गया। इसके बाद उन्हें पूर्व कदली गृहमें ले जाया गया। यहां मणिके पीठपर बैठाकर इन्हें सुगन्धित जलसे स्नान कराया गया । इसके बाद दिव्य वस्त्राभूषण से सजाकर इन्हें उत्तर दिशा के कदली गृहमें रत्न सिंहासन पर बैठाया गया । यहां अरणिकाष्ठसे अग्नि उत्पन्न कर उसमें गोशीर्ष चन्दनको जलाकर उससे दो रक्षा पोटलीयें बनायी गयीं और वे दोनों पोटलियां दोनोंके हाथमें बाँधी गयीं। इसके बाद जिनेश्वरके गुणगान कर, उनके चिरायु होनेकी कामना व्यक्त की गयी । इसके बाद दिक्कुमारियोंने पत्थरके दो गोलोंको एक दूसरेके साथ लड़ाया और वामादेवी तथा जिनप्रभुको पूर्व शैय्यामें रख, उन्हें नमस्कार कर अपने स्थानको चली गयीं । इस अवसर पर स्वर्ग में इन्द्रका आसन भी कम्पायमान हो उठा । इन्द्रको अवधिज्ञानसे जिनेश्वरके जन्मकी बात मालूम हो गयो इसलिये उसने उनके सम्मुख जाकर उन्हें विधिपूर्वक प्रणाम किया और शक्रस्तवसे प्रभुका स्तवन किया। इसके बाद इन्द्रने हरिणो गमेषी देवको आदेश दे, सुघोषा घंट द्वारा
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy