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________________ २७२ * पाश्वनाथ-चरित्र कि उनमें और इनमें क्या अन्तर है। गुणसुन्दरका कुमार, जिसको अवस्था केवल पाँच वर्षको थी, वह खेलनेके लिये उसके यहां रोज आया करता था। उसके साथ एक सेवक भी रहता था। प्रभाकरने उस सेवकको कुछ समझा बुझाकर उसे और राजकुमारको अपने घरमें छिपा रखा। इधर कुमार जब निश्चित समयपर घर न पहुँचा, तब चारों ओर उसकी खोज होने लगो, किन्तु कहीं भो उसका पता न चला। इससे राजाको बड़ो चिन्ता हुई और वह अपने मनमें नाना प्रकारके संकल्प विकल्प करने लगा। वह अपने मनमें कहने लगा कि राजकुमार मन्त्रीके यहां गया था ओर वहींसे गायब हो गया है, परन्तु मन्त्रीके ऊपर किसी प्रकारका सन्देह किया हो कैसे जा सकता है? क्या यह कभी सम्भव है कि उससे उसका कोई अनिष्ट हुआ हो ? देखते-हो-देखते यह समाचार समूचे नगरमें फैल गया। इससे राज परिवारको भांति नगरनिवासियोंके चेहरोंपर भी उदासी छा गयी। दूसरी ओर प्रभाकर भी मुँह बनाकर अपने घरमें ही बैठ रहा । उसको इस प्रकार दुःखित देखकर सुप्रभाने पूछा-"नाथ ! आज आप इस तरह उदास क्यों दिखायी दे रहे हैं ? राज-सभामें जानेका समय हो गया है। क्या आज वहाँ नहीं जाना है ?" प्रभाकरने दुःखित स्वरमें कहा—“प्रिये ! क्या कहूँ ? मैं राजाको मुँह दिखाने लायक नहीं रहा क्योंकि मैंने राजकुमारको मार डाला है ?" सुप्रभाने आश्चर्य और भयसे दांतों उंगली दाब कर कहा"नाथ ! यह क्या कह रहे हैं ? सच कहिये, मुझे आपको बातपर
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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