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* तृतोय सग *
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संगति करने योग्य सज्जनोंके लक्षण इस प्रकार बतलाये गये हैं :- "पराये दोष प्रकट न करना, दूसरेके गुण अल्प होनेपर भी उनकी प्रशंसा करना, परधन देखकर निरन्तर सन्तोष मानना, दूसरोंका दुःख देखकर दुःखित होना, आत्मश्लाघा न करना, नीतिका त्याग न करना, अप्रिय कहनेपर भी औचित्यका उलंघन न करना और क्रोध से सदा दूर रहना । इन लक्षणोंसे युक्त सज्जनोंकी संगति करनेसे क्या लाभ होता हैं, यह बतलाते हुए कहा गया है, कि सत्संग दुर्गतिको दूर करता हैं, मोहको भेदता है, विवेकको लाता है, प्रेमको देता है, नीतिको उत्पन्न करता है, विनयको बढ़ाता है, यशको फैलाता है, धर्मको धारण कराता है। और मनुष्य के सभी अभीष्ट सिद्ध करता है । किसीने यह भी कहा है कि हे चित्त ! यदि तुझे सद्बुद्धि प्राप्त करनी हो, यदि तू आपत्तिको दूर करना चाहता हो, यदि तू सन्मार्गपर चलना चाहता हो, यदि तू कीर्ति प्राप्त करना चाहता हो, यदि तू कुटिलताको दूर करना चाहता हो, यदि तुझे धर्म सेवनकी इच्छा हो, यदि तू पापविपाकको रोकना चाहता हो और यदि तुझे स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्त करनेकी इच्छा हो, तो गुणोजनोंका संग कर | क्योंकि सत्संगतिके प्रतापसे ही जीवको सभी तरहका सुख प्राप्त होता है । कहा भी है कि :
"पश्य सत्संग माहात्म्यं, स्पर्श. पाषाणयोगतः । लोहं स्वर्णणं भवेत्स्वणं - योगात्काचो मणीयते ॥ "
अर्थात् - " सत्संग की महिमा तो देखो, कि पारसमणिके
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