________________
* तृतीय सर्ग *
२५१ कौन मेट सकता है ? सबसे अधिक दुःखका विषय तो यह है कि मेरे पुत्र होनेपर भी मैं उसका जन्मोत्सव न कर सकूँगा। खैर, जो होनी थी सो हो गयी, अब पश्चाताप करनेसे क्या लाभ ?" ___ यह सोचता हुआ मन्त्री राजाके पास आया। उसे इस तरह राजाने उदास देखकर पूछा-“मन्त्री! तुम उदास क्यों हो! हर्षके स्थानपर यह विषाद क्यों ? क्या कोई विपरीत घटना घटित हुई है ?” राजाकी यह बात सुन मन्त्रीने उसे सारा हाल कह सुनाया। राजाने कहा—“मन्त्री ! उदास मत बनो। जो होनी होती है, वही होता है । इसमें तुम्हारा क्या दोष ? किन्तु उस वेश्याको अब तुम अपने महलमें ले आओ और उसे इस तरह छिपा कर रखो कि किसीको कानोकान इस बातकी खबर न पड़े। जब पुत्रका जन्म हो, तब उसे अपने पास रख कर वेश्याको किसी और जगह भेज देना। संभव है कि इससे तुम्हारी अधिक वदनामो न होगी। ___ मन्त्रीने राजाकी यह बात मान लो और उस वेश्याको अपने घरमें ला रखा। यथा समय उसने एक पुत्रको जन्म दिया। मन्त्रीने राजाको इसकी सूचना दे गुप्त रीतिसे उसका संस्कार कराया। जब यह बड़ा हुआ और इसकी अवस्था विद्याध्ययन करने योग्य हुई, तब मन्त्रीने अन्यान्य कई विद्यार्थियोंके साथ उसे भी पढ़ानेका भार अपने सिर लिया। उसने अन्यान्य विद्यार्थियोंको इसलिये साथ रखा, जिससे किसोको कोई सन्देह न हो । मन्त्रीने सर्वप्रथम अपने पुत्रको नीतिशास्त्रकी शिक्षा देनी आरम्भ को।