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________________ २२४ * पार्श्वनाथ-चरित्र * NAM भाटक कर्म-गाड़ी, बैल, हाथी, ऊंट, भैंसा, घोड़ा, गधा प्रभृतिपर माल लादकर या इन्हें भाड़ेपर चलाकर जीविका उपार्जन करनेको भाटक कर्म कहते हैं। ___ स्फोटक कर्म-आटा, दाल, चावल आदि तैयार करना, खानि, कूप या सरोवर खोदना, हल चलाना और पत्थर गढ़ना स्फोटक कर्म कहलाता है। __दन्तवाणिज्य हाथीके दांत, बाघ आदिके नख, हंस आदिके रोम, मृगादिकका चर्म, चमरी गायको पूंछ, शंख, शृंग, सीप कौड़ी, कस्तूरी प्रभृति ऐसे पदार्थोंका जो हिंसा द्वारा प्राप्त होते हैं, उनका व्यापार करना दंतवाणिज्य कहलाता है । लाक्षावाणिज्य-लाख, नील, मैनशिल, हरताल, वज्रलेप, सुहागा, साबुन और क्षार प्रभृतिके व्यवसायको लाक्षावाणिज्य कहते हैं। रसबाणिज्य-मक्खन, चरबी, मांस, मधु, मदिरा, घी, तेल, दूध प्रभृति पदार्थोंके व्यवसायको रसवाणिज्य कहते हैं। केशवाणिज्य-दास दासी प्रभृति मनुष्य किंवा गाय बैल और घोड़ा प्रभृति प्राणियोंका क्रयविक्रय केशवाणिज्य कहलाता है। विषवाणिज्य-विष, शस्त्रास्त्र, हल, यन्त्र, लोहा हरताल प्रभृति प्राणघातक पदार्थोंके क्रयविक्रयको विषवाणिज्य कहते हैं। यंत्रपीड़न कर्म-तिल, ईख, सरसव, अंडी प्रभृति पदार्थोंको घानीमें पेरना या जलयंत्र चलाना, यंत्रपीड़न कर्म कहलाता है। निर्लाञ्छन कर्म-गाय, बैल, प्रभृति पशुओंके कान, सींग, पूछ ,
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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