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________________ * द्वितीय सर्ग* १६१ दिलानेके लिये राजाके सम्मुख उपस्थित किया। राजाने नापित को सञ्चा-सच्चा हाल बतलानेका आदेश दिया। नापितने सारा हाल बतलाते हुए राजासे कहा-“हे स्वामिन् ! कुबेरको इसी प्रकार स्वर्ण प्रतिमा की प्राप्ति हुई थी, किन्तु मुझे तो लेनेके देने पड़ गये। नापितकी यह बात सुन राजाको बड़ाही आश्चर्य हुआ। उसने उसी समय कुवेरको बुलाकर प्रतिमा प्राप्तिका हाल पूछा। कुवेरने राजाको सारा हाल आद्योपान्त कह सुनाया। कुबेरके मुंहसे यह अद्भुत वृत्तान्त सुनकर राजाको बड़ाही आनन्द हुआ। उसने कहा-“अहो ! धन्य है मुझे, कि मेरे नगरमें ऐसे दानी, पुण्यात्मा और सत्यवादी पुरुष रहते हैं।" यह कह गजाने कुबेर का बड़ा आदर किया और नापितको मुक्त कर दिया। दोनों जम अपने अपने घर लौट आये । कुबेर इस समयसे और भी दान-धर्म करने लगा और इसो दान धर्मके प्रतापसे मृत्यु होनेपर उसे स्वर्गकी प्राप्ति हुई।" ___ केवली भगवानके मुंहसे कुबेरका यह दृष्टान्त सुनकर धनसारको संवेग प्राप्त हुआ। उसने कहा-“हे प्रभो! यदि ऐसा ही है, तो मैं आजसे परिग्रहका परिमाण करता हूं। अब मैं जो कुछ उपार्जन करूंगा, उसका आधा भाग धर्म कार्यमें खर्च करूंगा और किसीका भी दोष ग्रहण न करूंगा।" इस प्रकार धनसारने जिन प्रणोत गृहस्थ धर्मके और भी कई व्रत धारण किये और पूर्व जन्मके अपराधके लिये केवलोसे बारम्वार क्षमा प्रार्थना कर अपना अपराध क्षमा कराया। इसके बाद भव्य जीवोंको प्रतिबोध
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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