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________________ wornmomwwwxx MA १६४ * पार्श्वनाथ-चरित्र - किस प्रकार इन दोनों पुत्रोंके साथ यह नदी पार की जाय ! बहुत देरतक सोचनेके बाद उसे एक उपाय सुझाई पड़ा, तदनुसार वह एक पुत्रको वहीं छोड़, दूसरेको अपने कन्धेपर बैठाकर उसे नदीके उस पार पहुंचाया। एक पुत्रको इस तरह पार उतारने के बाद वह दूसरे पुत्रको लानेके लिये पानीमें उतरा किन्तु देव दुर्षिपाफसे ज्योंही वह नदीकी मध्य धारामें पहुँचा, त्यों ही जलके प्रबल वेगके कारण उसके हाथ पैर बेकार हो गये और वह पानीमें बहने लगा। एक पुत्र नदीके इस पार था और दूसरा उस पार । पिताकी यह अवस्था देख, दोनों बेतरह बिलखने लगे, किन्तु निर्जन अरण्यमें वहां था ही कौन जो उनकी पुकार सुनता और उनके पिताको बचाता। यह दोनों जहांके तहां रह गये और राजा बहता हुआ आंखोंके ओझल हो गया। सौभाग्यवश उसे पानीमें हाथ पैर मारते कुछ समयके बाद एक लकड़ी मिल गयो। लकड़ी क्या मिल गयी, मानो प्राण बचानेके लिये नौकाका एक सहारा मिल गया। वह उसीके सहारे पांच सात दिनके बाद एक किनारे लगा। उसे यह भी पता न था, इस समय मैं कहां और कितनी दूर निकल आया हूँ। नदीके किनारे बैठकर वह अपने भाग्यको कोसने लगा। रानीका वियोग अभी भूला ही न था, कि इस प्रकार उसके दोनों लाल उससे बिछुड़ गये। इनके स्मरणसे राजाका कलेजा फटा जाता था। वह कहने लगा-- "हे देव ! निष्ठुरताकी भी एक हद होती है। कहां वह मेरा राज्य और ऐश्वर्य, और कहां यह अनर्थपर अनर्थ ! जब तूने मेरे
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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