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________________ १५२ * पार्श्वनाथ चरित्र * की जंजीर और रत्नहार प्रभृति पहनकर अश्वारूढ हो राजाके साथ उद्यान जानेके लिये बाहर निकला । इसी समय किसी आवश्यक ! कार्यवश उसकी पत्नीने उसे बुला भेजा अतएव महाबलको लौट कर घर जाना पड़ा । : राजाकी सवारी इस बीचमें कुछ आगे निकल गयी । घरमें कुछ देर रहनेके बाद महाबल जब पुनः बाहर निकला, तब राजाके पास पहुँचनेके लिये वह अपने घोड़े को दौड़ाता हुआ उसी ओरको आगे बढ़ा । रास्ते में उसे वही वट वृक्ष मिला। उसे देखते ही नागकुमारकी वह बात स्मरण आ गयी अतः वह झटपट उस वटसे आगे निकल जानेके लिये लालायित हो उठा । वटके नीचे पहुँचते ही उसने घोड़े को कसकर एक चाबुक जमायी, ताकि घोड़ा जल्दी से निकल जाय, किन्तु देवकी गति कौन जान सकता है ? चाबुक लगते ही घोड़ा बेतरह ऊपरको उछला। उसके उछलते ही महाबलके कंठमें सोनेकी जो जंजीर पड़ी हुई थी, वह पीछेको ओरसे उछलकर वटकी एक डाली में फँस गयी। बस, फिर क्या, जो होनी थी, वही हुई। घोड़ा तो बिगड़ता हुआ आगेको भगा और महाबल उसी जंजीरके सहारे बृक्षमें लटक गया। जंजीर ऐसी बुरी तरह फँसी हुई थी, कि वह किसी तरह डालीसे निकल न सकी। इससे महाबलके गलेमें फाँसी लग गयी और वह वहीं छटपटाकर मर गया। मरते समय उसे फिर वही श्लोक याद आया, पर मुँहसे एक शब्द निकलने के पहले ही उसके प्राण पखेरू उड़ गये। लोगों ने उसका यह हाल देखतेही तुरत उसे नीचे उतारा और नाना
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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