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________________ १२८ * पार्श्वनाथ-चरित्र * कोंसे पूछताछ को। उद्यान रक्षकोंने कहा-"हम अरुणदेवके सम्बन्धमें तो कुछ नहीं जानते, किन्तु सिपाही यहांसे एक चोरको अवश्य पकड़ ले गये हैं और शायद उसे शूलोकी सजा भी दे दी गयी है।" यह संवाद सुनकर वह तुरन्त शूलीके पास गया। अरुणदेवको शूलोके पास खड़ा देखकर वह करुणक्रन्दन करने लगा और वहीं मूर्छित होकर गिर पड़ा। कुछ देरमें शीतल वायुसे जब उसको मूर्छा दूर हुई, तब लोगोंने उससे विलाप करनेका कारण पूछा। महेश्वरने लोगोंको बतलाया कि यह ताम्रलिप्ति नगरीके कुमारदेव नामक ब्यवहारीका पुत्र और इस नगरके जसादित्य श्रेष्ठीका जमाता है, नौका टूट जानेसे यह आजही मेरे साथ यहां आया है" यह सब हाल सुनकर सिपा. हियोंने समझा कि अब अवश्य हमारी भूल पकड़ी जायगो और उसके लिये शायद हमें सजा भी मिलेगी। यह सोचकर वे उसे पत्थरोंसे मारने लगे। किन्तु इसी समय यह बात उड़ती हुई जसादित्यके कानोंमें जा पहुँचो और वह भी अपनी पुत्री देयिणीके साथ वहां आ पहुँचा, उसने राजाकी आज्ञा प्राप्त कर अरुणदेवको शूलीके दण्डसे मुक्त कराया। इसी समय आकाश मार्गसे चन्द्र धवल नामक मुनोश्वर वहां आ पहुंचे। उनका आगमन समाचार सुनते ही राजा उनके पास गया । देवोंने वहां कमलकी रचना की। मुनीश्वर उसपर बैठकर इस प्रकार धर्मोपदेश देने लगे : "धर्मोऽयं जगतः सारः, सव सुखानां प्रधानहेतुत्वात्। तस्योत्पत्तिमनुजाः, सारं तेनैव मानुष्यम् ॥"
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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