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________________ * पार्श्वनाथ-चरित्र मोक्ष-सुखको खो देता है। इसलिये मनुष्यको धर्मके लिये यत्न करना चाहिये और प्रमादको त्याग देना चाहिये, क्योंकि प्रमाद परम द्वेषी है, प्रमाद परम शत्रु है, प्रमाद मुक्ति-मार्गका डाकू है और प्रमाद ही नरक ले जानेवाला है। इसलिये प्रमादका त्यागकर धर्म करना चाहिये। ____धर्म दो प्रकारका है—यति धर्म और गृहस्थ धर्म, । इसमें यति धर्म कठिन और गृहस्थ किंवा श्रावक धर्म सहज है। श्रावक धर्ममें १२ व्रत हैं जिसमेंसे पाँच अणुव्रत मुख्य हैं। वे अणुव्रत यह हैं-(१) अहिंसा अर्थात् प्राणातिपात विरमण (२) मृषावाद विरमण (३) अदत्ता दान विरमण (४) मैथुन विरमण (५) परिग्रहका प्रमाण किंवा विरमण । ___ शास्त्रों में प्राणातिपात विरमण ब्रतका फल बतलाते हुए कहा गया है, कि चित्तको दयाई रखनेसे दीर्घायुको प्राप्ति होती है ; श्रेष्ट शरीर, उच्च गोत्र, विपुल धन और बाहुबल प्राप्त होता है; उच्च कोटिका स्वामित्व, अखण्ड आरोग्य और सुयश मिलता है एवं संसार-सागरका पार करना सहज होजाता है। संसारमें धन, धेनु, और धराके देनेवाले लोग सुलभ हैं , किन्तु प्रणियोंको अभय देनेवाले दुर्लभ हैं। मनुष्यको कृमि, कीट पतंग और तृण वृक्षादिकपर भी दया करनी चाहिये और अपने ही आत्माके समान दूसरोंको भी समझना चाहिये। प्राणातिपात विरमण नामक व्रतमें पांच अतिचार त्याज्य माने गये हैं। वे पाँच अतिचार यह हैं :
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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