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* पार्श्वनाथ वरित्र #
छोटे भाईकी यह बातें सुन बड़े भाईको सन्तोष तो न हुआ; किन्तु फिर भी वह चुप हो रहा। वह समझ गया कि छोटा भाई अपनी धुनका पक्का है, इसलिये उसे समझाना-बुझाना व्यर्थ है । किन्तु इससे उसके वित्तको शान्ति न मिली। उसे शान्ति मिल ही कैसे सकती थी ? वह तो धनका भूखा था । उसने सोचा कि छोटे भाईके शिर घर-गृहस्थीका सारा भार छोड़ कर परदेश चल देना चाहिये । इससे दो लाभ होंगे। एक तो अपने शिर आ पड़ने पर छोटा भाई भी सुधर जायगा और दूसरे ईश्वरने चाहा तो भी मैं कुछ धन पैदा कर लूँगा । यह सोचकर उनने शीघ्र ही सब बातें भाईको समझा कर उसके हजार मना करने पर भी, वह विदेशके लिये चल दिया ।
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इस प्रकार धनदत्त घरसे प्रस्थान कर घूमता- घूमता रोहणाचल पहुँचा और वहां परिश्रम पूर्वक धनोपार्जन करने लगा । पन्द्रह वर्ष - में उसने एक हजार रन कमा लिये । इतना धन एकत्र कर लेने पर अब उसे कुछ सन्तोष हुआ । इधर घर छोड़े भी पन्द्रह वर्ष हो चुके थे, इसलिये उसने सोचा कि अब घर चलना चाहिये । यह सोच उसने बांसकी एक पोली नलीमें वह सब रत्न भरकर उसे अच्छी तरह कमर में बांध लिया और घरकी ओर प्रस्थान किया 1
कुछ दिनोंके बाद जब वह अपने गांवके पासवाले एक गांव में पहुंचा और उसका गांव केवल एकही मंजिल दूर रह गया, तब उसने सोचा कि यहां ठहर कर भोजनादिसे निवृत्त हो लेना चाहिये । निदान वह वहां ठहर गया। उसने अपना सामान एक बनियेके