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________________ 'प्रथम पवं ५२५ मादिनाथ-चरित्र प्रकारके सूक्ष्म और बादर अतिचारोंकी आलोचना की और पुन: अति शुद्धिके निमित्त महाव्रतका आरोपण किया, क्योंकि वस्त्रको दो चार बार धोनेसे जैसे विशेष निर्मलता आती है, वैसेही अतिचारसे विशेषरूपसे शुद्ध होना भी निर्मलताका कारण होता है । इसके बाद “सब जीव मुझे क्षमा करें, मैं सबका अपराध क्षमा करता हूँ। मेरी सब प्राणियोंके साथ मैत्री है, किसीके साथ मेरा वैर नहीं है।" यही कहकर उन्होंने आगार-रहित और पुष्कर भव चरित्र अनशनव्रत उन सब अमणोंके साथ ग्रहण किया । क्षपकश्रेणी में आरूढ़ हुए उन पराक्रमी पुण्डरीकके सभी घाती कर्म पुरानी रस्सोकी तरह चारों तरफसे क्षीण हो गये। अन्यान्य साधुओंके भी घाती कर्म तत्काल क्षयको प्राप्त हो गये । क्योंकि तप सबके लिये समान होता है। एक मासकी संलेखनाके अन्तमें चैत्र मासकी पूर्णिमाके दिन सबसे पहले पुण्डरीक गणधर को केवल-ज्ञान हुआ। इसके बाद अन्य सब साधुओंको भी केवल-ज्ञान प्राप्त हुआ । शुक्ल-ध्यानके चौथे चरण पर स्थित होकर वे अयोगी शेष अघाती कर्मोंका क्षय कर मोक्ष-पदको प्राप्त हुए। उस समह स्वर्गसे आकर मरुदेवीके समान भक्तिके साथ उनके मोक्ष-गमनका उत्सव मनाया। जैसे भगवान् ऋषभस्वामी पहले तीर्थङ्कर कहलाये, वैसेही वह पर्वत भी उसी दिनसे प्रथम तीर्थ हो गया। जहाँ एक साधुको सिद्धि प्राप्त हो, वही जब पवित्र तीर्थ कहलाने लगता है, तब वहाँ अनगिनत महर्षि सिद्ध हुए हों, उस स्थानकी पवित्रताकी उत्कृष्टताके सम्बन्धमें और क्या कहा जाये ?
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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