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________________ आदिनाथ चरित्र ५२४ प्रथम पर्व इस क्षेत्रके प्रभावसे तुम्हें परिवार सहित थोड़े ही समय में केवलज्ञान उत्पन्न हो जायगा और शैलेशो-ध्यान करते हुए तुम्हें परिवार सहित इसी पर्वत पर मोक्ष प्राप्त होगा ।" प्रभुकी यह आज्ञा अङ्गीकार कर, प्रणाम करनेके अनन्तर पुण्डरीक गणधर कोटि मुनियोंके साथ वहीं रहे । जैसे उद्वेलित समुद्र किनारोंके खण्डों में रत्न - समूहको फेंक कर चला जाता है, वैसेही उन सब लोगों को वहीं छोड़कर महात्मा प्रभुने परिवार सहित अन्यत्र विहार किया । उदयाचल पर्वत पर नक्षत्रों के साथ रहनेवाले चन्द्रमा की तरह अन्य मुनियोंके साथ पुण्डरीक गणधर उस पर्वत पर रहने लगे । इसके बाद परम संवेगवाले वे भी प्रभुकी तरह मधुरवाणीसे अन्यान्य श्रमणोंके प्रति इस प्रकार कहने लगे, 1 "हे मुनियों ! जयकी इच्छा रखनेवालेको जैसे सीमा- प्रान्तकी भूमिको सुरक्षित बनानेवाला किला सिद्धि दायक है, वैसेही मोक्षको इच्छा रखनेवालेको यह पर्वत क्षेत्रके ही प्रभावसे सिद्धि देनेवाला है । तो भो अब हमलोगोंको मुक्तिके दूसरे साधनके समान संलेखना करनी चाहिये । यह संलेखना दो तरह से होती है, — द्रव्यसे और भावसे । साधुओंके सब प्रकार के उन्माद और महारोगके निदानका शोषण करना ही द्रव्य-संलेखना कहलाती है और राग, द्वेष, मोह और सब कषायरूपी स्वाभाविक शत्रुओंका विच्छेद करना ही भाव-संलेखना कही जाती है ।" इस प्रकार कहकर पुण्डरीक गणधरने कोटि श्रमणोंके साथ प्रथमतः सब -
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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