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________________ आदिनाथ चरित्र ૪૮૮ प्रथम पर्व वाले चक्र से चक्रवन्त शोभित होता है, वैसेही आकाशमें उनके आगे-आगे चलनेवाले असाधारण तेजमय धर्म-चक्रसे वे भी शोभित हो रहे थे। सब कर्मोंको जीतनेके चिह्नस्वरूप ऊँचे जयस्तम्भके समान हज़ारों छोटी-मोटी ध्वजाओंसे युक्त एक धर्म-वजा उनके आगे-आगे भी चलती थी। मानों प्रयाण करते समय उनका कल्याण- मङ्गल करती हो, ऐसी आप ही आप निभर शब्द करती हुई दिव्य-दुन्दुभि उनके आगे-आगे बजती चलती थी। मानों उनका यश हो, ऐसा आकाशमें घूमता हुआ पादपीठ सहित स्फटिक रत्नका सिंहासन उनको भी शोभित कर रहा था। देवताओंसे रखे हुए सुवर्ण-कमलके ऊपर राजहंस के समान वे भी लीला सहित चरण-न्यास कर रहे थे 1 मानों उनके भय से रसातलमें पैठ जानेकी इच्छा करता हो, ऐसे नीचे मुखवाले उनके तीक्ष्ण दण्ड- रूपी कण्टकसे उनका परिवार आलिंष्ट नहीं होता था । मानों कामदेवकी सहायता करनेके पाप का प्रायश्चित करने की इच्छा करती हो, इस प्रकार छओं ऋतुएँ एक समय में उनकी उपासना करती थीं। मार्गके चारों ओरके नीचेको झुके हुए वृक्ष, जो संज्ञाहीन जड़ वस्तु हैं, दूरही से उनको नमस्कार करते हुए मालूम पड़ते थे पंखे की हवा के समान ठंढी, शीतल और अनुकूल वायु उनकी निरन्तर सेवा करती रहती थी । स्वामीके : प्रतिकूल चलनेवाले की भलाई नहीं होती, मानों यही सोचकर पक्षीगण नीचे उतर, उनकी प्रदक्षिणा कर, उनकी दाहिनी तरफ होकर चलने लगते थे। जैसे चंचल I
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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