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________________ आदिनाथ-चरित्र ४२२ प्रथम पर्व सेनाको मार गिरानेका उत्साह दिखला रहे हैं। मैं तो यहाँ कोई ऐसा मनुष्य नहीं देखता, जो युद्ध के लिये तैयार न हो। साथ ही ऐसा भी कोई नहीं दिखलाई देता, जो बाहुबली पर अनुराग न रखता हो। इस बहली-देशमें हल जोतनेवाले खेतिहर भी शूर. वीर और स्वामिभक्त हैं। क्या यह इस देशका ही प्रभाव है, अथवा राजा बाहुबलीमें ही ऐसा कोई गुण है । सामन्त आदि पारिषद तो मूल्य देकर ख़रीदे भी जा सकते हैं ; पर बाहुबलीने तो अपने गुणोंसे सारी पृथ्वीको मोल ली हुई पत्नीसी बना लिया है। जैसे अग्निके सामने तृणोंका समूह नहीं ठहरता, वैसे ही बाहु. बलीकी ऐसी सेनाके सामने तो मैं चक्रवर्तीकी विशाल सेनाको भी तुच्छ हो मानता हूँ। इस महावीर बाहुबलीके आगे मैं तो चक्रवर्तीको वैसा ही छोटा समझता हूँ, जैसा अष्टापदके सामने हाथीका छोटा बच्चा हो । शक्ति-सामर्थ्य में पृथ्वीमें चक्रवर्ती और स्वर्गमें इन्द्र विख्यात हैं, पर इन दोनोंके बीचमें अथवा इन दोनोंसे भी बढ़कर ऋषभदेवका यह छोटा पुत्र जान पड़ता है। मुझे तो ऐसा मालूम पड़ता है, मानों बाहुबलोके थप्पड़ के सामने चक्रीका चक्र और इन्द्रका वज्र भी व्यर्थ है। इस बाहुबलीको छेड़ना क्या है, रीछके कान पकड़ना और साँपको मुट्ठीमें पकड़ना है। जैसे व्याघ्र एकही मृगको लेकर सन्तुष्ट रहता है, वैसे ही इतनीसी भूमि लेकर सन्तुष्ट रहनेवाले बाहुबलीको छेड़ कर व्यर्थ ही शत्रु बनाया गया। अनेक राजाओंसे सेवित महाराज को क्या कमी दिखलाई दी, जिसके लिये उन्होंने वाहनके लिये
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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