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________________ प्रथम पर्व ४२१ आदिनाथ-चरित्र के वशवी होकर अपने प्राण देकर भी राजाका प्रिय करनेकी इच्छा प्रकट करते हुए देखा । युद्धकी बात सुन और लोगोंकी यह तैयारी देख, बाहुबली पर अटूट भक्ति रखने वाले कितने ही पहाड़ी राजा भी बाहुबलीके पास आने लगे । ग्वालेका शब्द सनकर जैसे गौएँ दौड़ी हुई चली आती हैं, वैसे ही उन पहाड़ी राजाओंके बजाये हुए सिंघेकी आवाज़ सुनते ही हज़ारों किरात, निकुंजोंसे निकल-निकल कर दौड़ते-हाँपते हुए आने लगे । उन शूर-वीर किरातोंमें कोई बाधको त्वचासे कोई मोरकी पोछोसे और कोई लताओंसे ही जल्दी-जल्दी अपने बाल बाँधने लगे। इसी तरह कोई सर्पकी त्वचासे, कोई वृक्षोंकी त्वचासे और कोई नील गायकी त्वचासे अपने शरीरमें पहने हुए मृगचर्मको बाँधने लगे। बन्दरोंकी तरह कूदते-फांदते हुए वे लोग हाथमें पाषाण और धनुष लिए हुए स्वामिभक्त श्वानोंकी तरह अपने स्वामीको घेर कर चलने लगे। वे सब आपसमें कह रहे थे, कि हम राजा भरतको एक-एक अक्षौहिणी सेनाको चूर्ण कर अपने महाराज वाहुबलीको कृपाका वदला अवश्य देंगे। . उनकी ऐसी सकोप तैयारी देख, सुवेग मन-हो-मन विवेकबुद्धिसे विचार करने लगा,- “ओह ! इस बाहुबलोके देशके लोग तो इसके ऐसे वशीभूत हैं, कि मालूम होता है, मानों ये अपने बापके वैरीसे बदला लेनेके लिए तत्परताके साथ युद्धकी तैयारी कर रहे हैं। राजा बाहुबलीकी सेनाके पहले ही रणकी इच्छा करने वाले ये किरात भी इस तरफ आने वाली हगरी
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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