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________________ प्रथम पर्व २७ आदिनाथ-चरित्र वर्षा-वर्णन । इसके बाद, ग्रीष्म ऋतु की तरह, प्रवासियों की चाल को रोकने वाली, मेघ-चिह्न-स्वरूपिणी, वर्षा ऋतु आगई। आकाश में यक्ष के समान धनुष को धारण करके, धारा रूपी बाणों की वृष्टि करता हुआ मेघ चढ़ आया। उससे संघ के लोगों को बड़ा कष्ट हुआ, वह मेघ सिलगाये हुए फूली की भाँति बिजली को घुमा-घुमाकर, बालकों की तरह, संघके सभी लोगों को डराने लगा; अर्थात् बालक जिस तरह घास की पुले को जलाकर घुमाते और लोगों को डराते हैं; उसी तरह वह मेघ रिजली को चमका-चमका कर संघवालों को भयभीत करने लगा। आकाश तक गये हुए और फैले हुए जलके प्रवाहने, पथिकों के हृदयों की तरह, नदियों के विशाल तटों-किनारों को तोड़ डाला ! नार्म के पानी ने पृथिवी के ऊँचे नीचे भागों को समान कर दिया। कमोकि जड़ पुरुषों का उदय होने पर भी, उनमें विवेक स्तापाता है ? अर्थात् मूों का अभ्युदय होने पर भी उनमें विवेक या विचार का अभाव ही रहता है। पानी, कीचड़ तथा काँटों से दुर्गम हुए मार्ग में एक कोस राह चलना चार सौ कोस के समान मालूम होने लगा। घुटनों तक कीचड़ में फंसे हुए लोग, जेल से छूटे हुए कैदियों की तरह, धीरे-धीरे चलने लगे। जल-प्रवाह को देखकर ऐसा भान होता था, मानो दुष्ट दैव ने, प्रत्येक राह में, प्रवाह के मिष से, अपनी भुजा-रूपी आगल लोगों के रोकने के
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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