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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व वाली व्याधि-रूपी व्याधोंको मार सकेगा ? अथवा उत्तरोत्तर बढ़ती हुई तृष्णाको चूर्ण कर सकेगा ? यदि हमारी सेवाके बदलेमें वह इस तरहका कोई फल हमें नहीं दे सकता, तो फिर इस संसारमें, जहाँ सब मनुष्य समान हैं, कौन किसकी सेवा करे ? उनको बहुत बड़ा राज्य मिल गया है, तो भी यदि उन्हें सन्तोष नहीं होता और वे बल पूर्वक हमारा राज्य छीन लेना चाहते हैं, तो हम भी एक ही बापके बेटे हैं; पर चूँकि तुम्हारे खामी हमारे बड़े भाई हैं, इसलिये हम बिना पिताजीको यह सब हाल सुनाये, उनके साथ युद्ध करनेको नहीं तैयार हैं। दूतोंसे ऐसा कह कर, ऋषभदेव जी के वे ६८ पुत्र, अष्टापदपर्वतके ऊपर समवशरण के भीतर विराजने वाले ऋषभ-स्वामीके पास आये। वहाँ पहुँचते ही प्रथम तीन बार उनकी प्रदक्षिणा कर उन्होंने परमेश्वरको प्रणाम किया। इसके बाद हाथ जोड़े हुए वे इस प्रकार उनकी स्तुति करने लगे। ____ “हे प्रभो ! जब देवता भी आपके गुणोंको नहीं जान सकते, तब दूसरा कौन आपकी स्तुति करने में समर्थ हो सकता है ? तो भी अपनी बाल-चपलताके कारण हम लोग आपकी स्तुति करते हैं। जो सदा आपको नमस्कार किया करते हैं, वे तपखियोंसे बढ़ कर हैं और जो तुम्हारी सेवा करते हैं, वे तो योगियोंसे भी अधिक हैं। हे विश्वको प्रकाशित करने वाले सूर्य ! प्रति दिन आपको नमस्कार करने वाले जिन पुरुषोंके मस्तक पर आपके चरण-नखकी किरणें आभूषण-रूप होकर
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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