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________________ प्रथम पर्व ३१३ आदिनाथ-चरित्र लगता है ; उसी तरह सब इन्द्र प्रमुके पीछे-पीछे चलने लगे। वहाँ से चलकर प्रभुःसोने के कोट के बीच में, ईशान कोन के देवछन्दोमें विश्राम लेने या आराम करने को बैठे। उस समय गणधरों में प्रधान ऋषभसेन ने भगवान् के पाद पीठ पर बैठकर धर्म-देशना. या धर्मोपदेश देना आराम किया ; क्योंकि स्वामी के खेद में विनोद, शिष्योंका गुणदीपन और दोनों ओर से प्रतीति ये गणधर की देशनाके गुण हैं। ज्योंही गणधर ने देशना समाप्त की, कि सब लोग प्रभुको प्रणाम कर करके अपने अपने घरों को गये। इस प्रकार तीर्थ पैदा होते ही गोमुख नामका एक यक्ष प्रभुके पास रहनेवाला अधिष्ठायक हुआ। उसके दाहिनी तरफ के दोनों हाथों में से एक वरदान चिह्नवाला था और एकमें उत्तम अक्षमाला सुशोभित थी। उसके बायीं तरफ के दोनों हाथों में बिजौरा और पाश थे। उसके शरीरका रंग सोनेका साथा और हाथी उसका वाहन था। ठीक इसी तरह प्रभुके तीर्थ में उनके पास रहनेवाली एक प्रतिचक्रा--यक्षेश्वरी नामकी शासनदेवी हुई। उसकी कान्ति सुवर्णके जैसी थी और गरुड़ इसका वाहन था, उसकी दाहिनी ओर की भुजाओं में वरप्रदचिह्न, बाण, चक्र, और पाश थे और बायीं ओर की भुजाओं में धनुष, वज्र, चक्र और अङ्कुश थे। यक्ष और यक्षिणी की स्थापना । इसके बाद नक्षत्रों-सितारों से घिरे हुए चन्द्रमाकी तरह
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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