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________________ आदिनाथ-चरित्र ३१२ प्रथम पवे ... बलिउत्प । उस समय अखण्ड, तुष-रहित और उज्वल शाल से बनाया हुआ चार प्रस्थ जितना बलि थाल में रखकर, समवसरणके पूर्व द्वार से , अन्दर लाया गया ; अर्थात् उस समय बिना टूटे हुए साफ और सफेद चावलों की चार प्रस्थ प्रमाण बलि थाल में रख कर, समवसरण के पूर्व दरबाजे से भीतर लाई गई। देवता ओंने उसमें सुगन्धी डालकर उसे दूनी सुगन्धित कर दिया था, प्रधान पुरुष उसे उठाकर लाये थे और भरतेश्वरने .उसे बनवाया था। उसके आगे आगे बजने बाली दुदुभि से दशों दिशाएं गूंज रही थीं। उसके मंगल गीत गाती गाती स्त्रियों चल रही थीं। मानो प्रभुके प्रभाव से उत्पन्न हुई पुण्यराशि हो, इस तरह वह पौर लोगों से चारों ओर से घिर रहा था। मानों बोने के लिए कल्याण रूपी धान्यका बीजहो, इस तरह वह बलि प्रभु की प्रदक्षिणा कराकर उछाल दिया गया। जिस तरह मेघ के जलको चातक-पपहिया ग्रहण करता है, उसी तरह आकाश से गिरनेवाले उस बलि के आधे भाग को आकाश में ही देवता ओं ने लपक लिया। जो भाग पृथ्वी पर गिरा, उसका आधा भरत राजाने लेलिया और जो बाकी रहा उसे राजाके गोती भाइयोंने आपस में बाँट लिया। उस बलिका ऐसा प्रभाव है, कि उस से पुराने रोग नष्ट हो जाते हैं और छै महीने तक नये रोग पैदा नहीं होते। इसके बाद उत्तर के दरवाज़ेकी राहसे प्रभु बाहर निकले। जिस तरह पद्म खण्ड के फिरने से भौंरा फिरने
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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