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________________ आदिनाथ चरित्र २६६ प्रथम पर्व भाई विद्याधरों से घिर कर, त्रिवर्ग-धर्म, अर्थ और काम-का बाधा न आवे इस तरह राज्य करते थे । कच्छ और महाकच्छ की तपश्चर्या । कच्छ और महाकच्छ जो कि राज तापस हुए थे, गंगा नदी के दहने किनारे पर, हिरनों की तरह, वनचर होकर फिरते थे और मानो जंगम वृक्ष हों इस तरह छालों के कपड़ों से शरीरको ढकते थे । कय किये हुए अन्न की तरह, गृहस्थाश्रमी के आहार को वे कभी छूते भी न थे । चतुर्थ और छट्ट वगैर: तपसे से उनकी धातुएं सूख गई थीं, अतः शरीर एक दम दुबले होगये थे और खाली पड़ी हुई धाम्मण की उपमा को धारण करते थे । पारणे के दिन भी सड़े हुए और ज़मीन पर पड़े हुए पत्रफलादि को खाकर हृदय में भगवान् का ध्यान करते हुए वहीं रहते थे 1 1 लोगों का प्रभुका आतिथ्य सत्कार करना । भगवान् ऋषभ स्वामी आर्य अनार्य देशों में मौन रहकर घूमते थे । एक वर्ष तक निराहार रहकर भुने प्रविचार किया कि, जिस तरह दीपक या चिराग़ तेलसेही जलता है और वृक्ष जलसेहो सरसव्ज़ या हरे भरे रहते हैं; उसी तरह प्राणियों के शरीर आहार से ही कायम रहते हैं, वह आहार भी बयालीस दोषोंसे रहित हो तो साधुको माधुकरी वृत्ति से भिक्षा करके उचित समय पर उसे खाना चाहिये । गये दिनों की तरह, अगर अब भी मैं -
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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