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________________ आदिनाथ चरित्र २६० प्रथम पर्व रहती है I जो भाग्यशाली पुरुष इनकी सेवा करता है, स्वयंवर बधूके समान, ज्योतिष्पति की लक्ष्मी भी उसे वरती है—उसे अपना पति बनाती है । वसन्त ऋतुसे जिस तरह विचित्र विचित्र प्रकारके फूलों की समृद्धि होती है, उसी तरह इनकी सेवासे इन्द्रकी लक्ष्मी भी प्राप्त होती है । मुक्तिकी छोटी बहन जैसी ओर कठिन से मिलने योग्य अरमिन्द्र की लक्ष्मी भी इनकी सेवा करने वाले को मिलती है 1 इन जगदीश की सेवा करने वाले प्राणी को जन्म-मरण रहित सदा आनन्दमय परमपद की प्राप्ति होती है । अर्थात् इनका सेवक जन्म-मरणके कष्ट से छुटकारा पाकर नित्य सुख भोगता है। ज़ियादा क्या । कहूँ, इनकी सेवासे प्राणी इस लोक में इनकी ही तरह तीन लोक का अधिपति और परलोक में सिद्ध होता है । मैं इन प्रभुका दास हूँ और तुम भी इनके सेवक हो ; अतः इनकी सेवाके फल स्वरूप मैं तुम्हें विद्याधरोंका ऐश्वर्य देता हूँ । उसे तुम इनकी सेवा से ही मिला हुआ समझो। क्योंकि पृथ्वी पर जो अरुण का प्रकाश होता है वह भी तो सूर्यसे ही होता है ये कहकर पाठ करने मात्र सिद्धि देने वाली यों ही और प्रज्ञाप्ति प्रभृति अड़तालिस हजार विद्याएँ उन्हें दी और आदेश किया कि तुम वैताढ्य पर्वत पर जाकर दो श्रेणियों में नगर स्थापन करके अक्षय राज करो । इसके बाद वे भगवान्‌को नमस्कार करके, पुष्पक विमान बना, उसमें बैठ; नागराजके साथही बहाँसे चल दिये। पहले उन्होंने अपने पिता कच्छ और महाकच्छके पास जाकर, स्वामी सेवा रूषी
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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