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प्रथम पर्व
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आदिनाथ-चरित्र क्या चातक-पपहिया मेघको छोड दूसरेसे याचना करता है ?भरत आदिक का कल्याण हो ! आप किसलिये चिन्ता करते हैं ? हमारे स्वामी से जो होना होसो हो, उसमें दूसरेको क्या मतलब ? अर्थात हम सेवक, ये स्वामी, हम याचक, ये दाता, इनकी इच्छा हो सो करें'। इनके और हमारे वीचमें बोलने वाला दूसरा कौन ? नमि विनमि को धरणेन्द्र द्वारा वैताट्य का
राज दिया जाना। उन कुमारों की उपरोक्त युक्तिपूर्ण बातें सुनकर नागराजने प्रसन्न होकर कहा-“मैं पातालपति और इन स्वामी का सेवक हूँ। तुम धन्य हो, तूम भाग्यशाली और बडे सत्यवान हो जो इन स्वामीके सिवा दूसरेको सेवने योग्य नहीं समझते और इसकी दृढ़ प्रतिज्ञा करते हो। इन भुवन पति की सेवासे पाशसे खींची हुई की तरह राज्य सम्पतियाँ पुरुषके सामने आकर खड़ी हो जाती हैं। अर्थात इन जगदीश की सेवा करने वालेके सामने अष्ठ सिद्धि और नवनिद्धि हाथ वाँधे खड़ी रहती हैं। इतना ही नहीं, इन महात्मा की कृपासे, लटकते हुए फलकी तरह, वैताढ्य पर्वतके ऊपर रहने वाले विद्याधरोंका स्वामित्व भी सहजमें मिल सकता है। और इनकी सेवासे, पैरोंके नीचेके खजाने की तरह, भुवनाधिपति की लक्ष्मी भी बिना किसी प्रकारके प्रयास और उद्योग के मिल जाती है। मन्त्रसे वशमें किये हुए की तरह, इनकी सेवासे व्यन्तरेन्द्र की लक्ष्मी भी इनके सेवक के पास नम्र होकर