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________________ AN तीसरा सर्ग। :- भरतसे राज्य सिंहासनासीन होनेको कहना भरतका उत्तर । LoLON ब प्रभुने अपने सामन्त और भरत तथा बाहुबलि आदि पुत्र अपने पास बुलवाये। उन्होंने भरतसे कहा-"हे पुत्र! तू इस राज्यको ग्रहण कर ; हमतो अब संयम-साम्राज्यको ग्रहण करेंगे।” प्रभुकी ये बातें सुन. कर क्षण भर तो भरत नीचा मुंह किये बैठा रहा, इसके बाद हाथ जोड़ नमस्कार कर गद्गद् स्वरसे कहने लगा:-“हे प्रभो! आपके चरण-कमलोंकी पीठके आगे लोटनेमें मुझे जो आनन्द आता है, वह मुझे रत्नजड़ित सिंहासनपर बैठनेसे नहीं आ सकता ; अर्थात आपकी चरणसेवामें जो सुख है, वह रत्न. मय सिंहासन पर बैठनेमें नहीं है। हे प्रभो! आपके सामने पैदल दौड़नेमें मुझे जो सुख मिलता है, वह लीलासे गजेन्द्रकी पीठपर बैठनेसे नहीं मिलेगा। आपके चरण कमलों की
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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