SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम पर्व २१५ आदिनाथ-चरित्र अप्सराओं द्वारा दोनों कन्याओं का शृङ्गार किया जाना। इसके बाद कितनी ही अप्सराओं ने, मङ्गल-स्नान कराने के लिये, सुनन्दा और सुमङ्गला को आसन पर बिठाई । मधुर-धबलमङ्गल गीत गाते हुए उनके सारे शरीर में तेल की मालिश की गई । इसके बाद, जिनके रत्नपुञ्ज से पृथ्वी पवित्र हुई है, ऐसी उन दोनों कन्याओं के सूक्ष्म पीठी से उबटन किया गया। उनके दोनों चरणों, दोनों, घुटनों, दोनों हाथों, दोनों कन्धों पर दो दो और सिर पर एक-इस तरह उनके अङ्गमें लीन हुए अमृत-कुण्ड. सदृश नौ श्याम तिलक किये गये और तकुए में रहने वाले कसूमी सूतोंसे बायें और दाहिने अङ्गों में मानो सम चतुरस्त्र संस्थान को जाँचती हो , इस तरह उन्होंने स्पर्श किया। इस प्रकार अप्सराओंने सुन्दर वर्णवाली उन बालाओंके, धायोंकी तरह उनकी चपलताको निवारण करते हुए पीठी लगाई; अर्थात् धाय जिस तरह अपने बालकको दौड़ने-भागनेसे रोकती है, उसी तरह उन्होंने उन बालाओंको पीठी लगा कर बाहर भागनेसे रोकते हुए पीठी लगाई। हर्षोन्मादसे मतवाली अप्सराओंने वर्णक का सहोदर भाई हो, इस तरह उद्वर्णक भी उसी तरह किया। इसके बाद मानो अपनी कुल-देवियाँ हों, इस तरह उनको दूसरे आसनपर बिठाकर सोनेके घड़ेके जलसे स्नान कराया। गन्धकषायी कपड़ेसे उनका शरीर पोंछा और नर्म वस्त्र उनके बालोंपर लपेटे
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy