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________________ आदिनाथ-चरित्र २१४ प्रथम पर्व घी और दही ला। हे मंजुघोषा ! सखियोंसे धवल अच्छी तरह गवा। हे सुगन्धे! सुगन्धित चीजें तैयार कर। हे तिलोत्तमा दरवाजेपर उत्तमोत्तम साथिये बना। हे मैना! तू आये हुए लोगोंका उचित बातचीतसे सम्मान कर। हे सुकेशि! तू बधू और वरके लिये केशाभरण तैयार कर । हे सहजत्या ! तू बरात में आये हुए लोगोंको ठहरने को जगह बता। हे चित्रलेखा ! तू मातृभवन में विचित्र चित्र बना। हे पूर्णिमे ! तू पूर्णपात्रों को शीघ्र तैयार कर। हे पुण्डरीके ! तू पुण्डरीकों से पूर्ण कलशों को सजा । हे अम्लोचा! तू वरमांची को उचित स्थानपर स्थापित कर। हे हंसपादि ! तू वधूवर की पादुका स्थापन कर। हे पुंजिकास्थला! तू जल्दी-जल्दी गोबर से वेदी को लीप। हे रामा ! तू इधर-उधर क्यों फिरती है ? है हेमा ! तू सुवर्ण को क्यों देखती है ? ये द्रुतस्थला! तू ढीली सी क्यों होगई है ? हे मारिचि ! तू क्या सोच रही है ? हे सुमुखि ! तू उन्मुखी सी क्यों होरही है ? हे गान्धर्वि! तू आगे क्यों नहीं रहती ? हे दिव्या ! तू व्यर्थ क्यों खेल रही है ? अब लग्न-समय पास आगया है, इसलिये अपने अपने विवाहोचित कामों में सब को हर तरहसे जल्दी करनी चाहिये।” इस तरह अप्सराओं का परस्पर एक दूसरीका नाम ले लेकर सरस कोलाहल होने लगा।
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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