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________________ आदिनाथ चरित्र प्रथम पर्व ध्वनि से बोलते थे - बाल्यावस्था होने पर भी उनकी वाणी में गाम्भीर्य और माधुर्य्य था। क्योंकि लोकोत्तर पुरुषों के शरीर की अपेक्षा से ही बालपन होता है । समचतुरस्र संस्थानवाले प्रभु का शरीर, मानो क्रीड़ा करने की इच्छावाली लक्ष्मी की काञ्चनमय क्रीड़ावेदिका हो, इस तरह शोभा देता था । समान उम्रवाले होकर आये हुए देवकुमारों के साथ, उनके चित्त की अनुवृत्ति के लिये, प्रभु खेलते थे । खेलते समय, धूलिधूसरित और घू घुरमाल धारण किये हुए प्रभु मतवाले हाथी के बच्चे के जैसे शोभायमान् लगते: यानी मदावस्था को प्राप्त हुआ हाथी का बच्चा जैसा अच्छा लगता है, प्रभु भी वैसे ही अच्छे लगते थे । प्रभु लीला मात्र से जो कुछ ले लेते थे, उसे बड़ी ऋद्धिवाला कोई देव भी न ले सकता था । यदि कोई देव बलपरीक्षा के लिये उनकी अँगुली पकड़ता, तो प्रभु के श्वास की हवा हो धूल की तरह वह दूर जा पड़ता था । कितने ही देवकुमार गेंद को तरह ज़मीन पर लेटकर, प्रभु को अजीब गेंदों से खिलाते थे । कितने ही देवकुमार राजशुक होकर, चाटुकार या खुशामदी की तरह, 'जीओ जीओ, सुखी हो' ऐसे शब्द अनेक तरह से कहते थे। कितने ही देवकुमार स्वामी को खिलाने के लिये, मोर का रूप बनाकर, केकावाणी से षड्ज स्वर में गा गाकर नाचते थे । प्रभु के मनोहर हस्तकमल को पकड़ने और छूने की इच्छा से, कितने ही देवकुमार, हंस का रूप धारण करके, गांधार स्वर में हुए प्रभु के आस-पास फिरते थे । कितने ही प्रभु के प्रीति २००
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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