SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम पर्व आदिनाथ-चरित्र खाली हाथ स्वामी के दर्शन करने उचित नहीं, इस विचारसे ही मानो इन्द्रने एक बड़ा ईख का साँठा या गन्ना अपने साथ ले लिया। मानो 'शरीरधारी शरद् ऋतु हो, इस तरह शोभता हुआ इन्द्र इक्षु दण्ड या गन्ना हाथ में लिये हुए नाभिराज की गोद में बैठे हुए प्रभु के पास आया। तब प्रभुने अवधि-ज्ञान से इन्द्र का संकल्प समझकर, उस ईख को लेने के लिये, हाथी की तरह, अपना हाथ लम्बा किया। स्वामी के भाव को समझनेवाले इन्द्रने, मस्तक से प्रणाम करके, भेंटकी तरह, वह इक्षु लता प्रभुको अर्पण की। प्रभु ने ईख ले लिया, इसलिये “इक्ष्वाकु” नाम का वश स्थापन करके इन्द्र स्वर्ग को चला गया। भगवान् के शरीर का वर्णन । युगादिनाथ का शरीर स्वेद-पसीना, रोग-मल से रहित, सुगन्धिपूर्ण, सुन्दर आकारवाला और सोने के कमल-जैसा शोभायमान् था। उनके शरीर में मांस और खून गाय के दूधको धारा जैसी उज्ज्वल और दुर्गन्ध-रहित था। उनके आहारविहार की विधि चर्मचक्षु के अगोचर थी और उनके श्वास की खुशबू खिले हुए कमल के जैसी थी,—ये चारों अतिशय प्रभु क जन्म से प्राप्त हुए थे। वज्रऋषभनाराच संघयण को धारण करनेवाले प्रभु मानो भूमिदंश के भयसे यानी पृथ्वी के टुकड़े टुकड़े होजाने के डरसे धीरे-धीरे चलते थे। यद्यपि उनक अवस्था छोटी थी–वे वालक थे, तोभी वे गंभीर और मधुर
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy