SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदिनाथ-चरित्र १४२ प्रथम पर्व पहले आरेमें मनुष्य तीन पल्योपम तक जीने वाले, छः कोस ऊँचे शरीर वाले और चौथे दिन भोजन करने वाले होते हैं । वे समचतुरस्त्र संस्थान वाले, सब लक्षणोंसे लक्षित, वज्रऋषभ नाराच संहनन - संघयण वाले और सदा सुखी रहने वाले होते हैं । फिर वे क्रोधरहित, मानरहित, निष्कपटी, लोभ-हीन और स्वभावसे ही अधर्मको त्याग करने वाले होते हैं । उत्तर कुरुकी तरह उस समय में रात-1 - दिन उनके इच्छित मनोरथको पूर्ण करने वाले, मद्याङ्गादिक दस तरह के “कल्पवृक्ष" होते हैं । उनमें मद्यांग नामक कल्पवृक्ष माँगनेपर तत्काल स्वादिष्ट मदिरा देते हैं । भृतांग नामक कल्पवृक्ष भण्डारीकी तरह पात्र देते हैं । तूर्याङ्ग नामक कल्पवृक्ष तीन तरहके बाजे देते है । दीप शिखा और ज्योतिष्क नामके कल्पवृक्ष अत्यन्त प्रकाश या रोशनी देते हैं । चित्रांग नामक कल्पवृक्ष चित्रविचित्र फूलोंकी माला देते हैं । चित्ररस नामक कल्पवृक्ष रसोइयोंकी तरह विविध प्रकारके भोजन देते हैं। मरायङ्ग नाम के कल्पवृक्ष मन चाहे गहने या ज़ेवर देते हैं। गेहाकार नामके कल्पवृक्ष गन्धर्वनगर की तरह क्षणमात्रमें सुन्दर मकान देते हैं और अनग्न नामक कल्पवृक्ष इच्छानुसार वस्त्र या कपड़े देते हैं। ये प्रत्येक वृक्ष और भी अनेक तरहके मन चाहे पदार्थ देते हैं । 1 उस समय पृथ्वी शक्कर से भी अधिक स्वादिष्ट होती है और नदी वगैर: का जल अमृतके समान मधुर या मीठा होता है । उस आरेमें अनुक्रमसे धीरे-धीरे आयुष्य, संहननादिक और कल्प वृक्षों का प्रभाव घटता जाता है ।
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy