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________________ १२८ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व एक मुखमंडन हो रहा था। एक समय जबकि, सामन्त राजा . लोग ईशानचन्द्र राजा के दर्शन और चाकरी के लिये आकर उस के इर्द-गिर्द बैठे हुए थे, तब वह राजभवन में गया। राजा ने भी उस के पिता की तरह उसका आसन और पान इलायची प्रभृति से खूब आदर-सम्मान किया और उसे स्नेह-दृष्टि से देखा । वसन्तागमन । उस समय एक मङ्गल-पाठक राजद्वार में आकर, शंखध्वनिका पराजित करनेवाली वाणी से इस तरह कहने लगा- हे राजन् ! आज आप के बाग़ में उद्यान-पालिका या मालिन की तरह अनेक प्रकार के फूलों को सजानेवाली वसन्त-लक्ष्मी शोभित हो रही है। इन्द्र जिस तरह नन्दन वन को सुशोभित करता है, उसी तरह आप भी खिले हुए फूलों की सुगन्ध से दिशाओं के मुख को सुगन्धित करनेवाले उस बगीचे को सुशोभित कीजिये।' मङ्गल-पाठक की उपरोक्त बात सुनकर, राजा ने द्वारापाल को हुक्म दिया-"अपने शहर में ऐसी घोषणा करा दो कि, कल सवेरे सब लोग राज-बाग़ में एकत्र हों।" इसके बाद राजाने स्वयं सागरचन्द्र को आज्ञा दी—'आप भी आइयेगा।' स्वामी को प्रसन्नत के यही लक्षण हैं। पीछे राजा से छुट्टी पाकर साहुकार का लड़का बड़ी खुशी के साथ अपने घर आया। वहाँ अकर उसने अशोकदत्त नाम के अपने मित्र से राजाज्ञा-सम्बन्धी सारी बात कही।
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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