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ન્યાયતીર્થ, વિદ્યાભૂષણ, પંડિત ઈશ્વરલાલજી જૈન, વિશારદ, હિન્દીરત્ન, ગુજરાનવાલા.
हे माग अलिाय. " सुभाषित-पद्य-रत्नाकर " को आयोपान्त पढ़ा, इस सर्वाङ्गसुन्दर पुस्तक के सम्बन्ध में क्या लिखं ? यह पुस्तक उपदेशक, प्रचारक, व्याख्यानदाता एवं साधारण व्यक्तियों के लिये बड़ा उपयोगी है। इस अमूल्य संग्रह को प्रकाशित करा के मनिराजश्री ने मानवसमाज का विशेष उपकार किया है। यद्यपि सुभापितसंग्रह की और बहुत-सी पुस्तकें विद्यमान हैं, पर में इस की विशेषताओं पर मुग्ध हूं। संस्कृत न जाननेवाले भी इससे पूरापूरा लाभ उठा सकते हैं । जैन विद्वानों एवं उपदेशकों के लिये यह विशेष उपयोगी है, क्योंकि इस में जैनधर्म सम्बन्धी ( जिन बातों का हम अजैनों में प्रचार करते हैं ) सभी विषय विद्यमान है। श्लोकों का विषयविभाग बड़े परिश्रम से किया गया है। प्रत्येक श्लोक के ग्रन्थ एवं अध्याय और पृष्ट आदि का सङ्केत आधुनिक नवीन पद्धति के अनुसार उपयोगी एवं बहुत अधिक लाभप्रद सिद्ध होगा। मेरा विश्वास है कि इस ग्रन्थ से विद्वानों का मनोरञ्जन तो होगा ही, साथ ही उन्हे पूर्ण सन्तोष भी होगा। संग्राहक मुनिराज इस साहित्यसेवा के लिये धन्यवाद के पात्र हैं। इस पुस्तक का जैनसमाज में ही नहीं, प्रत्युत जैनेतर समाज में भी पूरापूरा आदर होगा । छपाई, सफाई, कागज और बाइंडिंग आदि सभी उत्तम हैं। चार सौ पृष्ठों के दलदार ग्रन्थ का मूल्य १-४-० भी अधिक नहीं। मेरे हिन्दीभाषी भाई भी इस पुस्तक का रसास्वादन करें, इस अभिलाषा से इसका हिन्दी संस्करण भी प्रकाशित करने के लिये प्रार्थना करुंगा । मझे इस संग्रह के अध्ययन से पूर्ण विश्वास हुआ है कि इस के आगामी भाग इससे भी अधिक उपयोगी होंगे । इतिशम् ।"