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तृणपणः सवा कुर्यादीचा नि .
तस्यामपि चा कर्ता शुभकामनाविवार्चमे ॥ ७ ॥ एक चतुर्दशीको छोड़कना बाकीको समी दिनोंमतिनके और पत्तोंसे दाँत साफ करे । चतुदशीके दिन यदि जिन भगवानकी पूजा करनी हो तो सूखी हुई दतौनसे दाँझ साफ करे।॥७॥
सहस्रांशामकुवित्यः कुर्मान्तावावानम् ।
सा पापी मरफांयाति सर्वजीवदामानिगाः॥१॥ सूर्यके उगने के पहले जो दत्तौन करता है वह पापी है, जीवोंकी दयासे पसंमुख है और मरणको प्राप्त होता है । भावार्थ-यह भयप्रदर्शक वाक्य है, इसका सारांश इतना ही है। किं सूर्यो दयसे पहले दतौन करना हानिकारक हैं।.७१:॥
अङ्गारकालुकामिक भलादिनखरैस्तथा।
इष्टकालोष्ठपाषाणैन कुर्याद्दन्तधावनम् ॥ ७२ ॥ कोयला, बालू, राख, नख, ईट, मिट्टीका ढेलन और पत्थरसें दाँत न घिसे.॥ ७२ ॥
अलामो दस्तकाछामानिषिछापां निपावर्षिः ।।
अषां द्वादशगाहौसेखशुद्धि प्रजायते॥७३॥ यदि लकड़ीकी दतौन न मिले तो जलके बारह कुरले करनेसे ही मुखशुद्धि हो जाती है। और निषिद्ध तिथियोंमें भी ऐसा करनेसे।मालकिहोनछ है ॥ ७३ ॥
नेत्रयो सिकायाश्च कर्णयोंविवराणि च ।
नखान् स्कन्धौ च कक्षादि शोधयेदम्भसा नरः ॥७४ ॥ नेत्र, नाक, कान, नख, कन्धे और बगल आदिको भी जलसे शुद्ध करे ॥ ७४ ॥
जलाशये न कर्तव्यं निष्ठावं-मुखवावलम् ।
किञ्चिद्रेऽपि तीरस्य पुनर्नार्याक्ति तययाः॥७५ ॥ जलाशयके भीतर न तो यूँके और न मुँह धोवे । तीरसे कुछ हटकर कुरला वगैरह फेंके जिससे कि वह वापिस लौटकर जलाशयमें न आवे ॥ ७५ ॥
तोयेन देहद्वाराणि सर्वतः शोधयेत्पुनः ।
आचमनं ततः कार्य त्रिवार प्राणशुद्धये ॥ ७६ ॥ शरीरके सभी छिद्रोंको एक एक करके जलसे साफ करे । इसके बाद प्राणशुद्धि के लिए तीन बार आचमन करे ।। ७६ ॥'