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________________ सोमसेनमारमानिधित श्रीलीलाबत महीलाई कीर्तिप्रमोदास्पदं, वाग्देवीरनिकेतनं जयरमाक्रीडानिधानं महत् । स स्यात्सर्वमहोत्सवैकभवनं यः प्रार्थितार्थप्रदं प्रातः पश्यति कल्पपादपदलच्छायं जिनांघ्रिद्वयम् ॥ ११६ ॥ जो पुरुष प्रातःकाल उठकर मनचाहे फलोंको देनेवाले, कल्पवृक्षों के पत्तों जैसी लाल कांतिवाले जिनदेवके दोनों चरणोंका अवलोकन करता है वह पुरुष लक्ष्मीके कीड़ा करनेका स्थान, पृथिवी पर वंशपरम्पराके रहनेका घर, कीर्ति और आनन्दका स्थाब, सरस्वतीका क्रीड़ा-गृह, जयलक्ष्मीके रमण करनेका स्थान और सम्पूर्ण महोत्सवोंका भवन बन जाता है । भावार्थ जो जिनेन्द्रके चरणोंका प्रातःकाल उठकर दर्शन करता है उसे ये सब सम्पत्तियाँ प्राप्त होती हैं, मनचाही लक्ष्मी मिलती है, उसे सभी जन प्यारकी दृष्टिसे देखते हैं, उसकी वंशपरम्परा इस. पृथवीका उपभोग करती धन्यः स एव पुरुषः समतायुतो यः, प्रातः प्रपश्यति जिनेन्द्रखारविन्दम् । पूजासुदानतपसि स्पृहमीप्रचिचा सेन्यः सदस्सु नृसुरैर्युनिसोमसेनैः ॥११७॥ जो पुरुष समताभात्रोंसे खोरे ही जिन भमवानके मुख-कालका दर्शन करता है और उत्तम दान-तप-पूजादिमें जिसका चित्त लगा हुआ है वह पुरुष धन्य है । वह सभामें मनुष्यों और देवों द्वारा सेवा किया जाता है । वह सोमसेनमुनि द्वारा भी सेवनीय है ॥ ११ ॥ प्रातःक्रियेति मिर्दिष्टा संक्षेपेण यथागमम् । .. श्रुता मया गुरोरास्यात्करणीया मनीषिभिः ॥११८ ॥ इस अध्यायमें मैने प्रातःकाल संबंधी क्रियाओंका आगमके अनुसार संक्षेपसे कथन किया है। यह क्रियाएँ मैंने अपने मुरुके मुखसे सुनी हैं । बुद्धिमानोंको प्रातःकाल उठ कर ये क्रियाएँ करनी चाहिए ॥ ११८॥ "ब्राह्मे मुहूर्ते उत्थाय इति कर्तव्यतायां समाधिमुपेयात् ॥ अर्थात् सूर्योदयसे दो घड़ी प्रथम उठकर इति कर्तव्यतामें मन लगावे । श्रीसोमदेवविरचित नीतिवाक्यामृतकी यह नीति है । इसीका स्पष्टीकरण इस अध्यायमें किया गया है जो सर्वथा आईमार्गके अनुकूल है। इति श्रीधर्मरसिकशाले त्रिवर्णाचारनिरूपणे भद्वारकाधीसोमसेनविरचिते सामायिकाध्यायः प्रथमः ॥ पहला अध्याय।
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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