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________________ सोमसेनभट्टारकविरचित यदि धर्म, अर्थ, काम और मोक्षकी चाहना हो तो पुत्रजीव मणियोंकी मालासे और यदि शान्ति या पुत्र-प्राप्तिकी वांच्छा हो तो कमल-गट्टोंकी मालासे जप करे । यहाँ तक षट्कर्म कहे । अब पल्लवोंका कथन करते हैं ॥ १०९-११०॥ ॐ हाँ अर्हद्भ्यो नमः । ॐ ही सिद्धेभ्यो नमः । ॐ हूँ आचार्येभ्यो नमः । ॐ हाँ पाठकेभ्यो नमः । ॐ हः सर्वसाधुभ्यो नमः । इति मुक्त्यर्थिनामाराधनमन्त्रः॥१॥ यह मुक्ति चाहनेवाले पुरुषोंके आराधन करनेका मंत्र है ॥ १ ॥ ॐ हाँ अर्हद्भ्यः स्वाहा । ॐ ही सिद्धेभ्यः स्वाहा । ॐ हूँ आचार्येभ्यः स्वाहा । इत्यादि.ममंत्रः ॥२॥ यह होम मंत्र है॥ २॥ ॐ हाँ अर्हद्भ्यः स्वधा । ॐ ही सिद्धेभ्यः स्वधा । इत्यादिः शान्तिकपौष्टिकमन्त्रः ॥३॥ • यह शान्ति और पौष्टिक मंत्र है ॥ ३ ॥ ॐ हाँ अहंदूभ्यो हूं फट् । ॐ हीं सिद्धेभ्यो हूं फट् । इत्यादिविद्वेषमंत्रः॥४॥ यह विद्वेष मंत्र है ॥ ४ ॥ ॐ हाँ अर्हद्भ्योहूँ वषट् । ॐ हीं सिद्धेभ्यो हूँ वषट् । इत्याद्याकर्षणमन्त्रः॥५॥ यह आकर्षण मंत्र है ॥ ५॥ ॐ हाँ अहंदूभ्यो वषट्। ॐ ही सिद्धेभ्यो वषट् । इत्यादिवशीकरणमंत्रः ॥६॥ यह वशीकरण मंत्र है ॥ ६॥ ॐ हाँ अभ्यः ठ ठ । इत्यादिः स्तम्भनमन्त्रः ॥७॥ यह स्तम्भन मंत्र है ॥ ७ ॥ ॐ हाँ अहंदूभ्यो घे घे । इति मारणमन्त्रः॥८॥ यह मारण मंत्र है ॥ ८॥ १ ॐ हों पाठकेभ्यः स्वाहा, ॐ हा सर्वसाधुभ्यः स्वाहा इत्यादि नांचे लिखे सभी मैत्रोंमें जोड़ लेना चाहिए। परंतु जिनके अंतमें स्वधा हो उनके अंतमें स्वधा और जिमके अन्समें हूं फट् हूं वषट् इत्यादि हो वे सय लगा लेने चाहिए।
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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