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________________ त्रैवर्णिकाचार। ३९१ पिण्डं तिलोदकं चापि कर्ता दद्याच्छिलाग्रतः। सर्वेपि बन्धवो दधुः स्नातास्तत्र तिळोदकम् ॥ १७० ॥ . ततोऽपि स्नानमाचार्य निमज्जनसमन्वितम् ।। ततः कनिष्ठं कृत्वाऽग्रे सर्वे ग्रामं प्रयान्नु वै ॥ १७१ ॥ अनन्तर इस मृतक पुरुषका रत्नत्रयका आश्रय, सन्यासमरण और समाधिमरणका साधन तथा परमोत्कृष्ट परलोककी प्राप्तिका कारण शरीर नष्ट होगया ऐसा मान कर धर्मवात्सल्यसे और बंधुत्वके वात्सल्यसे भी उसके शरीरके प्रतिबिंबके लिए अर्थात् यह उसके शरीरकी स्मृतिका चिन्ह है ऐसा समझकर जलाशयकी तीरपर मंडपमें या विना ही मंडपके पिंडदानके लिए एक पत्थरकी स्थापना करे । उस शिलाके अग्रभागमें कर्ता पिंड और तिलोदक दे और अन्य सब बंधु भी स्नान कर तिलोदक देवें । अनन्तर सबके सब डुबकी लगाकर स्नान करें। पश्चात् एक छोटे बालकको आगे कर सब प्रामकी ओर प्रयाण करें ॥१६७-१७१॥ द्वितीय दिनसे लेकर दश दिनतकके कृत्य । परेघुरपि पूर्वाह्ने योषितो ज्ञातयोऽपि वा । गत्वा स्मशानं तत्रानौ विदध्युः क्षीरसेचनम् ॥ १७२ ।। तृतीये दिवसे कुर्यादग्निनिर्वापनं प्रगे। अस्थिसञ्चयनं तुर्ये पञ्चमे वदिनिर्मितिम् ॥ १७३ ॥ तत्र पुष्पांजलि षष्ठे सप्तमे बलिकर्म च । वृक्षस्य स्थापनं पश्चान्नवमे भस्मसंस्कृतिम् ।। १७४ ॥ दशमे तु गृहामत्रवासःशुद्धिं विधाय च । स्नात्वा च स्नापयित्वा च दाहक भोजयेद् गृहे ॥ १७५ ॥ एवं दशाहपयेन्तमेतत्कर्म विधीयते । पिण्डं तिलोदकं चापि कर्ता दद्यात्तदाऽन्वहम् ॥ १७६ ॥ दूसरे दिन सुबहके समय, स्त्रियां या मृतकके बंधुओंमेंसे कोई पुरुष स्मशानमें जाकर उस अनिमें दूध सींचें । तीसरे दिन सुबह अमि बुझावें । चौथे दिन अस्थिसंचय (नाखून आदि इकडे) करें। पांचवें दिन वहां एक वेदी (चबूतरा ) बनावें । छठे दिन उसपर पुष्पांजली क्षेपण करें। मातवें दिन बलि (सीझा हुआ धान्य) चढ़ावें । आठवें दिन वृक्षकी स्थापना करें । दशवें दिन घर, वर्तन, कपड़े आदिकी शुद्धि करें । अनन्तर स्वयं स्नान करके व औरोंको कराके दाहकोंको भपने घरपर भोजन करावें । इस तरह दश दिनतक यह विधान करें। संस्कारकर्ता उस समय प्रतिदिन पिंड और तिलोदक देवे ॥ १७२-१७६ ॥ पिण्डप्रदानतः पूर्वमन्ते च स्नानमिष्यते । पिण्डः कपित्थमात्रश्च स च शाल्यन्धसा कृतः॥ १७७ ।।
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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