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उपर्युक्त वक्तव्य से यह बात प्रगट प्रकाशित हो रहा है। अतः समय २ पर
( ३९ ).
है कि लगभग चार वर्षके दीर्घ कॉलमें यह ग्रंथ छपक भिन्न २ महाशयों द्वारा इसका प्रूफ
तथापि पूरा ग्रंथ छप जाने पर अनुवादक महाशयने इसका आदिसे, अंततः संशोधन है।
कर जो २
अशुद्धियां थीं उनका शुद्धिपत्र तथा जिन श्लोकोंका अनुवाद ही गलत हुआ था बनेका शुद्ध-अनुवाद लिख दिया, जो साथमें प्रकाशित है । पाठक उसके अनुसार यथास्थान संशोधन करके फिर ग्रंथका स्वाध्याय करें ।
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इस ग्रंथ के विषय और अनुवाद के सम्बन्धमें हम और तो कुछ कह नहीं सकते हैं, पर इतना जरूर कहेंगे कि अनुवादक महाशयने बड़े परिश्रम के साथ सरल भाषा में इसका अनुवाद किया है। इसमें जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत तीनों वर्णोंका आचरण और क्रियाओंका बहुत विस्तार के साथ खुलाशा वर्णन दिया है । अतः यदि विवादस्थ बातोंको, थोड़ी देर के लिये, हम एक तरफ रहने दें, तौभी यह ग्रंथ गृहस्थके लिये बहुत ही उपयोगी, एवं प्रत्येक जैनीके पढ़ने योग्य है
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अंतमें हम अनुवादक महाशयको धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकते, जिन्होंने हमारी प्रार्थना स्वीकार कर इस ग्रंथका अनुवाद कर दिया । बिना आपकी सहायता के हम इसे इस रूप में प्रकाशित करनेमें असमर्थ रहते ।
ता० २४-११-२४ ई०
निवेदकबिहारीलाल कठनेरा जैन ।