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________________ ..., त्रैवर्णिकाचार ।..... प्रकृत और विकृत सूतकके लक्षण । प्रकृतं जायते स्त्रीणां मासे मासे स्वभावतः । अकाले द्रव्यरोगााद्रेकात्तु विकृतं मतम् ॥६॥ स्त्रियोंके जो स्वभावसे ही महीने-महीने में रजस्राव होता है उसे प्राकृत रज कहते हैं। और जो असमयमें द्रव्य, रोग और आदि शब्दसे राग-इन तीनोंके उद्रेकसे जो रक्तस्राव होता है उसे विकृत रज कहते हैं। भावार्थ-कितनीही स्त्रियां एक माह पहले भी रजस्वला हो जाती हैं, उसमें द्रव्य, राग और रोग ऐसे तीन कारण हैं । इन तीनों कारणोंसे रजस्राव होनेको विकृत रजस्राव कहते हैं। इन तीन कारणजन्य रजकी संज्ञा रक्त है, रज नहीं । इन तीन कारणजन्य विकृत रजके तीम भेद हो. जाते हैं-रोगज, रागज और द्रव्यज । संतति उत्पन्न होनेके पहले मजाके बढ़ जानेसे जो स्त्रियोंके रक्त बहने लगता है वह रोगज रज है। पित्त आदि दोषोंकी विषमतासे जो पुनः पुनः रक्त बहता है वह रागज रज है। और जो. धातुओंकी विषमतासे उत्पन्न होता है वह द्रव्यज रज है। तथा महीने बाद जो रजस्नाव होता है वह कालज है और प्राकृत है.॥६॥ अकाले यदि चेत् स्त्रीणां तद्रजो नैव दुष्यति । पञ्चाशद्वषादृध्वं तु अकाल इति भाषितः ॥७॥ स्त्रियोंके जो अकालमें रजस्राव होता है। उससे वे दूषित (अशुद्ध) नहीं है या वह रज इपित रज नहीं है । पचास वर्षसे ऊपरका काल भी अकाल कहा गया है ।। ७ ॥. ..... रजसो दर्शनात्स्त्रीणामशौचं दिवसत्रयम् । ...... .... ... ... ... . .... .:.;. कालजे चाद्धरात्राचेत्पूर्व तत्कस्यचिन्मतम् ॥ ८॥ रात्रावेव समुत्पन्ने मृते रजसि प्रतके। पूर्वमेव दिनं ग्राह्यं यावनोदेति वै रविः ॥ ९ ॥ रात्रेः कुर्यात्रिभागं तु द्वौ भागा पूर्ववासरे। ... ऋतौ मूते मृते चैव ज्ञेयोऽन्त्यांशः परेऽहनि ॥१०॥ रजोदर्शनके समयसे लेकर तीन दिन तक स्त्रियां अशुद्ध रहती हैं-वे चौथे दिन गृहकार्योंके योग्य होती है। आधी रातसे पहले यदि स्त्री रजस्वला हो, या कोई मर जाय, या प्रसूति हो तो उस रातको पहले दिनमें ही गिनना चाहिए। अथवा तीनों कार्य रात्रिमें किसी भी समय हो, जब तक सूर्य न उगे तबतक उस सारी रातको पहले दिनमें ही शुमार करना चाहिए। अथवा सत्रिके तीन भाग करे । उनमेंसे पहले के दो भागों में ये तीनों कार्य हों तो उन दोनों भागोंको प्रहले दिनमें और भन्तके तीसरे भागको आगेके दिनमें गिनना चाहिए। इस तरह इस विषयमें तीन मत हैं ॥१०॥ ऋतुकाले व्यतीते तु. यदि नारी. रजस्वला ।. ... ... ... तत्र स्नानन शुद्धिः स्यादृष्टादशदिनात्पुरा ॥ ११ ॥ ऋतुकालके बीत जानेपर अठारह दिनसे पहले यदि कोई स्त्री रजस्वला हो जाय तो. वह सिर्फ स्नान कर लेनेपर शुद्ध है; उसे पुनः तीन दिन तक आशौच पालमेकी आवश्यकता नहीं ॥ ११ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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