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सोमसेनभट्टारकविरचित.. मंत्र:-ॐ पुलोमजापल्ल्या सार्ध यथा पाकशासनस्य अमा रोहिण्या देव्या जैवातृकस्यैव यथा कन्दर्पदेवस्य सार्क रत्या देव्या सम्बन्धस्तथा कल्याणसम्माप्तयोवेधूवरयोरनयोः करोतु सम्बन्धं बन्धमाला तनोतु भाग्यं सौभाग्यं च शान्ति काति दीर्घमायुष्यमपत्यानां बहूनां लब्धि चापि दद्यात् । ___ इन दोनों दंपतियोंका संबंध ऐसा हो जैसा इंद्र और शचीका, तथा कामदेवका और रतिका । " ॐ पुलोमजा पत्न्या साधं " इत्यादि मंत्र पढ़कर उपाध्याय वधू और वरको आशीर्वाद देवे।। १६२॥
___ माला-बंधन मंत्र । ॐ भार्यापत्योरेतयोः परिणति प्राप्तयोस्तुरीये घस्रे नक्तं वेलायां तासपर्यायाश्व तौ सम्बध्येते सम्बन्धमाला अतो लब्धिर्बह्वपत्यानां द्राधीयं आयुश्चापि भूयात् ।
अनेन कन्यावरयोः कण्ठे मालारोपणम् । इति मालामन्त्रः।। "ॐ भार्यापत्योरेतयोः" इत्यादि ऊपर लिखा मंत्र पढ़कर चौथे दिनकी रात्रिके समय वधू और वरको माला पहनावें।
सुहोमावलोकः पुनर्मगलीयं, ससूत्र क्रमाद्धन्धयेत्कण्ठदेशे । स्वसम्बन्धमालापरीवेष्टनं च, सुकर्पूरगोशीर्षयोर्लेपनं च ॥ १६३ ॥
प्रथम होम करे । फिर कन्याके गलेमें वर ताली बांधे । अनन्तर उपाध्याय वर-वधूको माला पहनावे । पश्चात् नियोगी जन दोनोंके कपूर और गोरोचनाका लेप करें ॥ १६३ ॥
वधूभिर्युपात्तापात्राभिराभिः, प्रवेशो वरस्यैव तद्वच्च वध्वाः । शुभे मण्डपे दक्षिणीकृत्य तं वै, प्रदायाशु नागस्य साक्षाद्वलिं च ॥ १६४ ॥
जिन सुहासिनियोंने अर्घपात्र (आरती) हाथमें लिया है वे वर और वधूको मंडपकी प्रदक्षिणा दिलाकर उसके अन्दर ले जावें । वहां पूर्वोक्त कमलके आठ पत्तोंपर खिचे हुए नागोंको बलिप्रदान करें ॥ १६४॥
स्वपितृगोत्रसुचिन्हितमण्डले हयसमीपे वधूमपि दर्शयेत् ।
स्वपितृगोत्रसुचिन्हितमण्डले वृषसमीपे वरस्य मता स्थितिः ॥ १६५ ॥ ___ नागोंको बलि देते समय दक्षिणद्वारपर खिंचे हुए घोडेके समीप, जहां पर कि कन्याके पिताके गोत्र आदि लिखे रहते हैं वहां कन्याको खड़ी करे । तथा उत्तर द्वारपर खिंचे हुए बैलके समीप, जहां पर कि वरके पिताके गोत्र आदि लिखे रहते हैं वहां वरको खड़ा करे ॥ १६५ ॥
उपाध्यायवाग्भिः समीपे समेत्य, स्वके मंचके चोपविश्यैव साधु । सताम्बूलसत्तण्डुलैः प्रीत एव, च्युतं कंकणं स्थापयेत्सूत्रकं च ॥ १६६ ॥
उपाध्यायके बुलानेपर वर-वधू उसके समीप आवें । आकर अपने अपने आसनोंपर बैठे । वहीं पर तांबूल और तंडुलके साथ कंकण-मोचन विधिके द्वारा खोले हुए कंकण सूत्रको रक्खे ॥१६६॥